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Take Hindi > categories > ईसाई धर्म के संस्थापक कौन थे | ईसाई धर्म भारत में कब आया

ईसाई धर्म के संस्थापक कौन थे | ईसाई धर्म भारत में कब आया

Saryu Prasad
Last updated: 2022/04/08 at 12:14 PM
Saryu Prasad
ईसाई धर्म

ईसाई धर्म

यह भारत में मुख्यतः गोवा, महाराष्ट्र, अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, एवं केरल में प्रचलित है|

Contents
ईसाई धर्मईसाई धर्म के संस्थापक कौन थे | ईसाई धर्म का जीवन परिचयईसाई धर्म के प्रमुख त्योहारईसाई धर्म की विशेषताएंईसाई धर्म का महत्त्वईसाई धर्म के उपदेशईसाई धर्म का विस्तार 

ईसाई धर्म भारत में कब आया – रोमन कैथोलिको का विश्वास है कि यह धर्म सेन्ट फ्रांस द्वारा ईसाई धर्म भारत में लाया गया है| जबकि प्रोटेस्टेन्ट धर्म मुख्यतः ब्रिटिश प्रभाव के कारण भारत में फैला|

जैन धर्म के बारे में यहाँ पढ़े 

ईसाई धर्म के संस्थापक कौन थे | ईसाई धर्म का जीवन परिचय

ईसाई धर्म के संस्थापक जीसस (ईसा मसीह) थे, जो एक यहूदी थे| इसका जन्म जरुसलम के निकट बैथलहम नामक स्थान पर हुआ था| उस समय यहूदी समाज में अनैतिकता, भ्रष्टाचार, और अन्धविश्वास का बहुत ज्यादा प्रकोप था| इससे छुटकारा पाने के लिए ईसा जैसे मार्ग- दर्शक की जरुरत थी| युग की इसी जरुरत को पूरा करने के लिए ईसा पैदा हुए| इस समय वे अपना उपदेश सरल भाषा और कहानियों के द्वारा दिया करते थे| उनके उपदेशो का जनता पर काफी प्रभाव पड़ने लगा| सदा जीवन, आकर्षक व्यक्ति तथा सबके लिए प्रेम और सहानुभूति के कारण उसके अनुयायीयों की संख्या बढ़ने लगी| उसने बुराईयों की आलोचना शुरू कर दी, जिससे राजा उसकी आलोचना से घबराकर उसे बंदी बना लिया गया और क्रॉस पर प्राण दण्ड दे दिया|

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ईसाई धर्म के प्रमुख त्योहार

ईसाईयों का विश्वास है, कि जीसस पुनः जीवित हो गया था, जिसे पुनर्जीवित कहा जाता है| इसलिए इस घटना के याद में प्रत्येक साल ईसाई धर्म मानने वाले लोग ईस्टर का त्यौहार मानते है| और जिस दिन जीसस की मृत्यु हुई थी, उस दिन को गुड फ्राईडे समझा जाता है| ऐसा विश्वास किया जाता है कि जीसस 40 दिनों तक अपने मित्रो के बीच रहने के बाद स्वर्ग चला गया| ईसाई धर्म मानने लोगो का सबसे बड़ा त्यौहार बड़ा दिन या क्रिसमस है|  जीसस के जन्म दिन की ख़ुशी में मनाया जाता है|

ईसाई धर्म की विशेषताएं

इस धर्म में विस्तार रूप से पूजा-पाठों और विधि-विधानों का स्थान नहीं है| धर्म चलाने के लिए पुरोहितों की जरुरत नहीं है| महात्मा ईसा ने कर्म-सिधांत पर बल दिया| उनका कहना था, कि प्रेम और भक्ति द्वारा ही मनुष्य अमर हो सकता है| उसने सेवा के महत्त्व से जन-मानस को परिचित कराया| जीसस ने अहिंसा पर भी विशेष जोर दिया| उनका कहना था, कि ईश्वर उसी की मदद करता है जो अपनी सहायता स्वंय करता है| अतः उसने आत्मनिर्भरता पर भी जोर दिया| मनुष्य अपने सत्कर्मो से ईश्वर को प्राप्त कर सकता है|

ईसाई धर्म का महत्त्व

संसार का सबसे बड़ा और लोकप्रिय ईसाई धर्म  है| संसार का ऐसा कोई भी देश नहीं है, जहाँ इस धर्म  को मानने वाले लोग न बसते हो| यूरोप और अमेरिका का तो यह प्रमुख धर्म है| भारत में भी इस धर्म को मानने वाले लाखो लोग बसते है| यह धर्म सत्य, अहिंसा, सेवा, त्याग, बलिदान, दया, प्रेम, सहानुभूति, तथा मानवता के उच्च आदर्शो पर चलता है| इस धर्म में बर्बरता का स्थान नहीं है| इसलिए संसार के सभी सभ्य लोगो ने इस धर्म को पसन्द किया और अपनाया| सभ्यता और संस्कृति के सर्वोपरि विकास पर पहुँचने के लिए जिन बातों की जरुरत है| वे सभी इस धर्म में मौजूद है|

ईसाई धर्म के उपदेश

  1. ईश्वर एक है, जो सब का दयालु पिता है और हम सदा उसके समान भाव से पुत्र है| इसलिय हम सब मानव प्राणी भाई-भाई है|
  2. सभी को मानवमात्र से प्रेम करना चाहिए| ऊँच-नीच, छोटे-बड़े का भेदभाव नहीं रखना चाहिए|
  3. मानव-जीवन प्रेम, अहिंसा, सत्य, सद्व्यवहार तथा ईश्वर भक्ति पर आश्रित होना चाहिए|
  4. प्रत्येक व्यक्ति को अपने चरित्र तथा आचरण में सुधार करना चाहिए तभी ईश्वर का राज्य स्थापित हो सकेगा|
  5. शत्रु से भी प्रेम करना चाहिए तथा उनकी भलाई करनी चाहिए|
  6. सांसारिक लोभ, मोह तथा अभिमान से बचना चाहिए|
  7. अपनी आवश्यकता से अधिक सम्पति एकत्रित नहीं करना चाहिए| उनका कथन है कि सुई के छेद में से ऊँट का निकलना सम्भव है, परन्तु ईश्वर के राज्यों में धनी व्यक्ति का प्रवेश पाना सम्भव नहीं है|
  8. उनका उपदेश है, बुराईयों से घृणा करो, बुरे व्यक्ति से नहीं|
  9. प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छा और उत्साह से दूसरी की सेवा करना चाहिए|
  10. बुरे कर्मो के लिए ईश्वर दण्ड देता है पर प्रायशिचत करने पर वह अपराधो को माफ कर देता है|

धर्म का इतिहास. यहाँ पढ़े 

ईसाई धर्म का विस्तार 

महात्मा ईसा के योग्य तथा विश्वासपात्र शिष्य पीटर और पाल के परिश्रम के फलस्वरूप इस धर्म का प्रसार सीरिया, रोम तथा आस-पास के प्रदेशो में हुआ| बाद में रोमन सम्राट कान्सटेण्टाइन के यह स्वीकार कर लेने से रोमन साम्राज्य के समस्त प्रान्तों में ईसाई धर्म को राजधर्म मान लिया गया|

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