गुमला जिला
झारखण्ड राज्य का एक सुंदर प्राकृतिक गुमला जिला जो झारखण्ड राज्य के दक्षिण – पश्चिम दिशा मे स्थित है. इस जिला के चारों ओर घने जंगल और पहाड़ो से घिरा हुआ है. गुमला जिला दक्षिण छोटानागपुर प्रमंडल के साथ – साथ राँची, लोहरदगा, खूंटी, ओर सिमडेगा जिला भी इसी प्रमंडल के अंतर्गत आता है. गुमला जिला समुद्र तल से 652 मीटर कि ऊंचाई मे है. गुमला जिला नहीं बनाने से पहले ये राँची जिला का ही उपविभाजन था. जो अभी वर्तमान समय मे दक्षिण छोटानागपुर प्रमंडल का हिस्सा है. इस जिला से राष्ट्रीय राजमार्ग 43, 143, ओर 143A गुजरती है.
गुमला जिला की मुंदरी भाषा बहुत ही ज्यादा लोकप्रिय है. इस क्षेत्र के ग्रामीण इलाको मे नागपुरी और सादरी भाषा अधिकतर बोली जाती है. जो ग्रामीण क्षेत्र के लोग उसे गोमिला कहते है. यहाँ पर पशुओ का मेला भी लगाया जाता है. जो “गौमेला” के नाम से प्रसिद् है.30 अप्रैल 2001 से पहले गुमला मे 2 सब-डिवीज़न गुमला तथा सिमडेगा था. अभी वर्तमान समय मे गुमला मे 3 सब-डिवीज़न गुमला, चैनपुर, ओर बासिया है.
गुमला जिला कब बना था?
यह जिला बिहार सरकार के अधिसूचना संख्या के तहत 07/T-1-204/83 को बनाया गया था. ये पहले राँची जिला का ही हिस्सा था. इसको दिनांक 16 मई 1983 को राँची से पृथक करके एक नया जिला का निर्माण किया गया.
गुमला जिला क्यों प्रसिद्ध है?
दक्षिण छोटानागपुर प्रमंडल के अंतर्गत गुमला मे सप्ताह मे मूल रूप से एक दिन पशु मेला का आयोजन किया जाता है. जो गौमेला से सम्बंधित है. नागपुरी और सादरी भाषा के लोग जिसको “गोमिला” के नाम से पुकारते है. गुमला को मुंदरी भाषा के लोग अपने ही शब्द मे लोकप्रिय मानते है. जहाँ स्थानीय जनजाति लोगों के द्वारा खेती की जाने वाली चावल तथा धान-कुटाई के लिए प्रसिद् है.
गुमला का इतिहास
प्राचीन समय के दौर का इतिहास ये कहता है. की गुमला मे पहले से ही माध्यकाल से तालुक रखता था. क्योंकि यहाँ पर राजा नागवंश का शासन चलता था, जो ब्रिटिश शासन काल के समय लोहरदगा मे चलता था. जिसमें सन 1843 ई. मे बिशुनपुर का हिस्सा बन गया. जहाँ देवनंदन सिंह को गुमला मे शासन का अधिकार दिया गया. प्राचीन के दौर मे गुमला जिला पश्चिम भाग के पड़ोसी जिला मे ज्यादातार मुंडा और उरांव जनजाति का क्षेत्र अधिक था. जो आर्यो समाज के समय झारखण्ड को वन प्रदेश के नाम जाना जाता था.
मध्य काल शासन
उस समय अशोक सम्राट 273वींसी से लेकर 232 वींसी तक मगध काल मे शासन किया था. जिस वक्त मौर्य कि मृत्यु हुई. उसके बाद कलिंग राजा खरवले ने झारखण्ड प्रदेश मे अपना सेना का गठन शुरू कर दिया था. गठन करने के साथ-साथ राजगढ़ और पाटलिपुत्र (पटना) को तहस-नहस करके रख दिया था. सन 335ई. से लेकर 380ई. के दौरान समुन्द्र गुप्त ने अपना अभियान रथ बनाया था. इटसिग एक चीनी यात्री होने के नाते नालंदा और बोधगया छोटानागपुर पठार के रास्ते से ही यात्रा किये थे. छोटानागपुर के राजशाही के मृत्यु होम के बाद पाँचवी शताब्दी स्थापना किया था. उस समय फनिमुकुट को पहले राजा को चुना गया था.
गुमला जिला का आकड़ा
जिला – गुमला
क्षेत्रफल -5327 sq.km
कुल जनसंख्या -1025213
पुरुष जनसंख्या -514390
महिला जनसंख्या -510823
भाषा – हिंदी, नागपुरी, खड़िया, कुडूख और उड़िया
गाँव कि संख्या – 952
प्रखंड कि संख्या – 12
पंचायत कि संख्या -159
साक्षरता दर – 65.73%
पुरुष साक्षरता दर – 75.55%
महिला साक्षरता दर – 55.90%
पिन कोड़ – 06524
RTO CODE – JH07
Official website – gumla.nic.in
गुमला का चौहदी क्या–क्या है?
इस जिला के चारों तरफ झारखण्ड प्रदेश का ही जिला मौजूद है. परन्तु पश्चिम दिशा को छोड़कर, जिसमें पूरब दिशा की ओर राँची तथा खूंटी जिला है, पश्चिम दिशा मे छत्तीसगढ़ राज्य का जशपुर और सरगुजा जिला है, उत्तर दिशा मे लोहरदगा और लातेहार जिला है, और दक्षिण दिशा मे सिमडेगा जिला है.
गुमला जिला का नामकरण कैसे हुआ?
पूर्वजो से बासे आ रहे लोगों के मुताबिक इस जगह पर प्रत्येक साल सप्ताह में एक दिन गाय का मेला आयोजन किया जाता था. जिसमें गायों की खरीद एवं बिक्री के साथ-साथ बर्तन, आभूषण और घरेलू समान का भी खरीदारी होता था. तब से गुमला को “गौमेला” के आधार पर गुमला का नामकरण हुआ.
गुमला जिला मे कितना प्रखंड है?
इस जिला के अंतर्गत 12 प्रखंड को शामिल किया गया था, जो निम्न प्रकार से है :-
- गुमला
- सिसई
- बिशुनपुर
- चैनपुर
- घाघरा
- डुमरी
- बासिया
- रायडीह
- कामडारा
- भरनो
- पालकोट
- अल्बर्ट एक्का
गुमला जिला मे प्रमुख नदी कौन–कौन सी है?
जिला में तीन नदी बहती है, दक्षिण कोयल नदी, उतरी कोयल नदी तथा शंख नदी है.
कृषि एवं सिंचाई परियोजना
गुमला जिला में कृषि एक प्रमुख साधन है. जो हर मौसम में खेती होती है. यहाँ धान के खेती अधिक होती है. इसके अलावा ज्वार, बाजरा, अरहर, कुल्थी, मक्का, गेंहू आदि का भी उत्पादन किया जाता है. जिला में मौसमी सब्जी का भी उत्पादन किया जाता है. जिसमे मुख्य रूप से हल्दी, अदरक, धनिया, लहसुन, आलू आदि शामिल है.
सिंचाई परियोजना
गुमला जिला में पांच सिंचाई परियोजना का निर्माण हुआ है. इस सिंचाई परियोजना के माध्यम से खेती को अपने जरुरत के हिसाब से हर मौसम में प्रयाप्त पानी मिल सके.
परियोजना का नाम स्थापना वर्ष
कंसजोर जलाशय 1989
रामरेखा जलाशय 1983
अपर शंख जलाशय 1987
धनसिंग टोली जलाशय 1986
संस्कृति
दक्षिणी छोटानागपुर पठार के गुमला मे उरांव जनजाति के लोग सरहुल,करमा पर्व आदि तरह के त्यौहार बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है. जो गुमला निवासियों का क्षेत्रीय पर्व है.
अर्थव्यवस्था
वैसे तो इस जिला मे कोई बड़ा उधोग नहीं है. यहाँ जंगल से आधारित उत्पादन लाह, इमली, करंज बीज, तथा बांस को बेचकर पैसे का आमदनी होता है. जबकि लोग यहाँ पर मछली पालन तथा रेशम का उत्पादन भी करते है. इसके साथ ही मनरेगा जोबकार्ड धारी मजदूरों को रोजगार मुहैया कर उसका संकट स्थिति का समाधान करने का भी प्रयास किया जाता है.
धर्म एवं भाषा
झारखण्ड प्रदेश के दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल मे हिन्दू धर्म, ईसाई, इस्लाम, जैन धर्म और सरना धर्म मनाने वाले लोग रहते है. और हिंदी, नागपुरी, सादरी, कुडूख आदि प्रकार की भाषा बोली जाती है.
गुमला का जलवायु
जिला का जलवायु समशितोषण प्रकार की है. जहाँ औसत तापमान 23° से लेकर 25° डिग्री सेल्सियस रहता है. औसत वार्षिक तापमान 1000-1100 मिली तक का मौजूद रहता है.
गुमला का मिट्टी
गुमला जिला मे अलग-अलग तरह के मिट्टी पाई जाती है, जो निम्न प्रकार से है :-
लाल मिट्टी – यह लाल मिट्टी गुमला मे अधिक मात्रा मे पाई जाने वाली मिट्टी है, जो झारखण्ड प्रदेश कि सर्वोच्च मिट्टी मे गिना जाता है. यह मिट्टी ग्रेनाइट अवशेष से बनी होती है. जहाँ कृषि के क्षेत्र मे कम उपजाऊ मिट्टी मना जाता है.
लेटेराइट मिट्टी – यह लेटेराइट मिट्टी हलके गहरे रंग का होता है. इस मिट्टी मे कई तरह के ककड़ पत्थर भी मौजूद रहता है, यह मिट्टी कृषि के लिए अच्छी उपयोगी नहीं मानी जाती है.
पहाड़ एवं पर्वत
पहाड़ तथा पर्वत प्राकृतिक का एक अनोखा रूप होता है, जिससे दृश्य को देखकर मन मचलने लगता है. ठीक उसी तरह गुमला मे भी कई प्रकार की पहाड़-पर्वत है. जिसमें से पालकोट प्रखंड मे स्थित गोबरसिल्ली पहाड़, धोडलता पहाड़ भी है. और बासुदेवकोना जहाँ पर पत्थर की मूर्तियां स्थापित किया गया है. अजंता की गुफा और मूर्तियां के लिए बेहद प्रसिद् स्थल है. जो यहाँ के स्थानीय निवासी के लोग इसे “पर्वत” के नाम से पुकारते है.
स्वास्थ सेवा
अस्पताल मे इंसान स्वास्थ होने के लिए जाते है. जिनमें से गुमला मे भी एक सरकारी सदर अस्पताल है. झारखण्ड सरकार इन अस्पताल को संचालित करती है. ताकि गुमला के लोगों को अच्छी इलाज मुहैया कराया जा सके, जिला के प्रखंड स्तर पर भी सामुदायिक स्वास्थ केन्द्र तथा प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र का भी संचालन झारखण्ड सरकार ही करता है. ऐसे कई छोटे-बड़े नर्सिंग होम भी उपलब्ध है. गुमला सदर अस्पताल की स्थापना लगभग दो दशक पहले किया गया था. क्योंकि यहाँ के लोग निशुल्क सेवा और जरुरतमंदो, गरीबों को एक अच्छी इलाज दे सके. जिला मे कुल 24 अस्पताल मे से एक सदर अस्पताल है, 11सामुदायिक स्वास्थ केन्द्र तथा 13 प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र है.
नोट :- इसमें खाली सरकारी अस्पताल का ही जिक्र किया गया है. इनमे कोई प्राइवेट अस्पताल का जिक्र नहीं हुआ है.
गुमला मे खनिज़ सम्पदा
जिला में खनिज भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. जहाँ पर बॉक्ससाइट, चुना पत्थर, सीसा, क्वाटर्ज, कायनाइट और लौहा तरह-तरह के खनिज़ पाये जाते है.
स्कूल तथा कॉलेज
गुमला मे कुछ सरकारी और कुछ गैर सरकारी स्कूल,कॉलेज भी है. जिनमें से सरकारी संस्थान इस प्रकार से है :-
स्कूल
- केंद्रीय विधालय स्कूल गुमला
- गॉवनमेंट गर्ल्स मिडिल स्कूल गुमला
- संत जॉन पब्लिक स्कूल चीटर गुमला
- जवाहर नवोदय विद्यालय गुमला
- डॉन बॉस्को विधालय गुमला
- एस. एस. गर्ल्स हाई स्कूल गुमला
- एस.टी. स्टीफ़ेंस स्कूल गुमला
कॉलेज
- वोमंस कॉलेज गुमला
- के.ओ. कॉलेज गुमला
- बी.एन.जालन कॉलेज
- गुमला पॉलिटेक्निक गुमला
- इंटर महिला कॉलेज
- परमवीर अल्बर्ट एक्का मेमोरियल कॉलेज चैनपुर
- कार्तिक उरांव कॉलेज गुमला
- PVAEM कॉलेज चैनपुर गुमला
- मॉडल डिग्री कॉलेज घाघरा गुमला
गुमला में स्टेडियम
परामवीर अल्बर्ट एक्का स्टेडियम – अल्बर्ट एक्का एक मूल भारतीय नागरिक थे. जो गुमला जिला से सम्बन्ध रखते थे. वे एक सैनिक के रूप म कार्यरत थे, जब 1971 ई. में भारत-पाकिस्तान का युद्ध हुआ था. तो उस समय शहीद हुए थे. इसलिए इसके नाम पर एक स्टेडियम का निर्माण किया गया और उस स्टेडियम का नाम परामवीर अल्बर्ट एक्का स्टेडियम नाम रख दिया गया.
स्टेडियम का रख रखाव
ग्राउंड में जमीन ज्यादा ही कड़ा हो गया है. जिनसे खिलाड़ियों को प्रैक्टिस करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. साथ में छोटे-छोटे कंकड़ पत्थर भी पाये जाते है. जिसमें अभ्यास करने के दौरान चोट-घाट लगने का भी डर बना रहता है. स्टेडियम के अंदर कुछ भवन भी है. जो पूरी तरह से खाली पड़ा हुआ है. अंदर में शौचालय भी है. जो पूरी तरह हर दम बंद रहता है. ठीक ढंग से पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं किया गया है. जबकि एक डीप बोरिंग भी किया गया है. फुटबॉल का गोल पोस्ट को भी उखाड़ के फेक दिया है. इस तरह से बड़ी खामिया नज़र आती है. स्टेडियम का भी, और गुमला में संत इग्नाटियस हॉकी स्टेडियम, सुशांती देवी क्रिकेट घाघरा स्टेडियम भी बनाया हुआ है.
गुमला में पर्यटन स्थल
महासदाशिव मंदिर – यह महसदाशिव मंदिर गुमला शहर से लगभग 16 किलोमीटर की दुरी में है, शिव मंदिर लगभग 2 एकड़ क्षेत्र मे बना है. जिसकी ऊँचाई जमीन स्तर से 85 फिट पर है. इस मंदिर मे आराध्यदेव के अलावे अन्य 84 काले पत्थरो से बने देवी देवता भी है, विशेष रूप से मंदिर मे आराध्यदेव महासदाशिव अपने अनूठे के लिए मशहूर है. जानकारी के अनुसार सनातन धर्म मे 18 पुराण है, जिनमें 10 मे शिवजी का उल्लेख किया गया है.
इनके अलावे धर्म ग्रंथो की विस्तृत से शिवजी के 19 अवतारों मे अनगिनत रूप माना गया है. जिस पर कई प्रकार के मनुष्य के गुणों को जैसे क्षमा-क्रोध, हर्ष-विषाद इत्यादि देखने के लिए समय – समय पर मिलता है, बल्कि शिवजी का 108 नाम है, लेकिन कुछ लोग शिवजी के 160 नाम को भी मानते है. मुख्य रूप से शिवजी के तीन सुंदर रूप भी है, शिव, सदाशिव और महसदाशिव है. महसदाशिव का विशाल चिन्ह भी है. जिसका 26 शिष्य और 52 भुजाएं है. यह महासदाशिव मंदिर झारखण्ड का प्रथम शिव मंदिर है.
कामडारा
यह कामडारा पर्यटन स्थल गुमला जिला के सरिता पंचायत मे है. जो कामडारा से सरिता पंचायत की मुख्य दुरी 11 से 12 किलोमीटर पर है. इस जगह पर भगवान शिव के पुराने मंदिर के लिए विख्यात है. जिसमें पहाड़ के नीचे स्तर मे मंदिर है. यहाँ पर श्रद्धालुओं पूजा-अर्चना के लिए भीड़ उमड़ती है. लेकिन शिवरात्रि के दौरान एक मेला का भी आयोजन किया जाता है.
नागफेनी
यह नागफेनी पर्यटन स्थल गुमला शहर से लगभग 18 से 19 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है. जो गुमला जिला के सिसई प्रखंड मे है. भगवान जगन्नाथ का मंदिर जो बहुत ही प्रसिद् स्थल है. जहाँ पर एक सांप के आकार का एक बड़ा सा चट्टान है. इस नागफेनी मंदिर के अगल-बगल प्राकृतिक जंगल नज़र आता है. लोग यहाँ पर भ्रमण करने के लिए भी आते रहते है.
नगर
ये नगर किला गुमला मुख्यालय से 40 किलोमीटर की दुरी पर है. नगर किला जो सिसई प्रखंड के अंतर्गत आता है. ये नगर किला मे नागबंसी राजाओं का किला हुआ करता था. इसलिए इस जगह का नाम छोटानागपुर राजा नागवंशी के नाम पर रख दिया गया.
देवाकी
घाघरा प्रखंड क्षेत्र के घाघ नदी के किनारे मे स्थित देवाकी मंदिर जो बाबाधाम परिसर के लिए श्रवण माह मे मेला का भी आयोजन किया जाता है. जो गुमला के मुख्य जगह से 32 किलोमीटर पर है. यह देवाकी धार्मिक स्थल महादेव का जन्म स्थान है. इस मंदिर मे शिव जी और पार्वती जी बासते है. श्रवण माह के समय श्रदालुओं शिवलिंग मे दूध तथा पानी चढ़ाने के समय नुक्कड़ के अगल-बगल पर उचित स्थान बनाया जाता है. यह देवाकी मंदिर 1967-68 मे खोज हुआ था, अभी शिवलिंग के ऊपर एक मंदिर भी है.
हापामुनी
यह हापामुनी एक प्राचीन मंदिर मे से है, जो गुमला से लोहरदगा रोड के समीप स्थित एक मंदिर है. ये मंदिर घाघरा प्रखंड मे है. गुमला शहर से हापामुनी की मुख्य दुरी 35 किलोमीटर है. नागावंश के 22वें राजा मोहन राय के बेटे ने बनवाया था, इन्होने 869ए.डी. से लेकर 905ए.डी. के बीच शासन किया था. मंदिर को देखभाल के लिए गुरु हरिनाथ, जो एक ब्राह्मण समुदाय से सम्बन्ध रखते थे. 1391ई. मे राजा शिवदास ने भगवान विष्णु का मूर्ति स्थापना किया था. हापामुनी मंदिर 1100 साल पुराना है. इस मंदिर को हिन्दुओ का आस्था से जुडी हुई है. मंदिर परिसर गाँव के बीचो बीच मे स्थित है.
अंजन
अंजन छोटानागपुर पठार के दक्षिण कोना मे स्थित है. इनके अगल-बगल घने जंगल तथा पहाड़ों से घिरा हुआ है. ये गाँव महावीर हनुमान की माँ अंजनी देवी के नाम से लिया गया है. इसके अंदर एक गुफा अवस्थित है, जहाँ पर महावीर हनुमान जी की माँ बसती थी. जगह-जगह पर कई ऐसे सारे पुराने प्राचीनतम समय के वस्तुएँ भी थे, जो अभी के दौर मे पटना स्थित संग्रहालय मे है. अंजनी गुफा के अंदर हनुमान जी अपनी माँ अंजनी देवी के गोद मे बैठा हुआ है. इसलिए इस जगह को हनुमान जी का जन्म स्थान भी माना जाता है.
टांगिनाथ
यह टांगिनाथ धर्म स्थल गुमला के मुख्य जगह से करीब 50 किलोमीटर की दुरी पर है, जिसमें डुमरी प्रखंड के अंतर्गत आता है. डुमरी और टांगिनाथ के माध्य स्थित नाला, जलमार्ग जो बरसात के मौसम मे लोगों को आने जाने के लिए मुश्किल होता है. धर्म स्थल जमीन के नीचे स्तर से पहाड़ पर 300 फीट की ऊँचाई पर है. टांगिनाथ मंदिर लगभग 10000 वर्ग मीटर के क्षेत्र मे फैला है. जहाँ पर भगवान बिष्णु, सूर्या और लक्ष्मी के देवी देवताओ की मूर्तियां है. मंदिर के अंदर 100 से ज्यादा शिवलिंग मौजूद है.
बासुदेवकोना
यह मंदिर गुमला मुख्यालय से 18 किलोमीटर की दूर पर है, बासुदेवकोना मंदिर धार्मिक स्थलों मे से एक है. जहाँ पर पत्थरों की मूर्तियां पाई जाती है. इस मंदिर परिसर के बगल मे एक झील भी है.
पालकोट
गुमला से पालकोट की दुरी 25 से 26 किलोमीटर की होगी. यह क्षेत्र ग्रामीणों का मुख्य कृषि व्यवसाय का स्रोत है. पालकोट के पूरब दिशा मे बासिया प्रखंड है. और पश्चिम दिशा मे रायडीह प्रखंड है, उत्तर दिशा मे गुमला प्रखंड है, और दक्षिण-पश्चिम दिशा मे सिमडेगा जिला स्थित है. पालकोट गुफा के अंदर जल भी है. जो शुद् जल को निरुपित करता है. पालकोट के गुफा मे नागवंशी राजा, महाराजाओं का गढ़ हुआ करता था. पहले के अपेक्षा गुफा का रास्ता थोड़ा साँकरी हो गया है. यहाँ पर कहानी रामायण की कथा तथा कंस्य बर्तन मिलते थे.
परिवहन सुविधा
सड़क मार्ग – गुमला जिला रांची और सिमडेगा के NH – 43 के साथ जुड़ा हुआ है. इसके अलावा यह लोहरदगा, डाल्टनगंज, लातेहार जैसे शहरों के साथ भी जुड़ा हुआ है. जो बस के माध्यम से आसानी से पहुंचा जा सकता है.
NH – 78 के माध्यम से ये छतीसगढ़ राज्य के साथ भी जुड़ा हुआ है.
रेलवे स्टेशन – गुमला जिला में पोकला रेलवे स्टेशन है. जो आसानी से ट्रेन के माध्यम से पहुंचा जा सकता है.
एयरपोर्ट – गुमला जिला में अभी कोई भी एयरपोर्ट नही है. जिला का नजदीकी एयरपोर्ट रांची है.
निष्कर्ष
हमने इस लेख के माध्यम से गुमला जिला के बारे में बताने का प्रयास किया है. मै आशा करता हु कि आपलोग भली – भांति समझ गए होंगे. इस लेख में कहीं भी कोई शब्द छुट गया है. तो हमे कमेंट जरुर करे, अगर ये लेख जारा सा भी अच्छा लगा हो तो अपने दोस्तों एवं सोशल मीडिया में जादा से जादा शेयर करे, धन्यवाद्