हड़प्पा सभ्यता के उदय विस्तार एवं पतन का वर्णन कीजिए

हड़प्पा सभ्यता की जानकारी

हड़प्पा सभ्यता, भारतवर्ष में सिन्धु नदी की घटी में एक उच्च कोटि की सभ्यता का उदय और विकास हुआ था| इस सभ्यता को सिन्धु घटी की सभ्यता कहते है| मोहनजोदड़ो, हडप्पा आदि स्थानों की खुदाई में प्राप्त वस्तुओ के अवशेषों से यह प्रमाणित हो गया है. कि आर्यों के आने से पहले ही सिन्धु घटी में एक उच्च कोटि की सभ्यता का विकास हो चूका था|

हडप्पा सभ्यता का नामकरण

शुरू में हडप्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई से इस सभ्यता के बारे में पता चला था| बाद में इस सभ्यता के क्षेत्र अनेक जगहो की खुदाई के कारण विस्तृत हो गया| इसलिए हडप्पा जहाँ प्रारम्भ में इस सभ्यता के अवशेष मिले, उसी स्थान के नाम पर इस सभ्यता का नामकरण हडप्पा सभ्यता कर दिया गया|

हड़प्पा सभ्यता कहाँ कहाँ विकसित हुई

पुरातात्विक खोजो और उत्खननो के फलस्वरूप सिन्धु घटी की सभ्यता का प्रसार-क्षेत्र काफी विस्तृत हो गया है| इस सभ्यता का विस्तार पश्चिम में मकरन तट प्रदेश पर सूतकजेन-डोर से पूरब में अलमगीरपुर तक और उतर में जम्मू में मांदा से लेकर दक्षिण में महाराष्ट्र में प्रवर नदी घटी में दायमाबाद तक था|

हड़प्पा सभ्यता का काल क्रम क्या था

आधुनिक समय में हडप्पा सभ्यता का काल रेडियो कार्बन विधि से निर्धारित किया गया है| इसके अनुसार इस सभ्यता का काल 2500 ई.पू से 1500 ई.पू तक मना जाता है|

हडप्पा सभ्यता के निर्माता

हडप्पा सभ्यता के निर्माताओ के सम्बन्ध में मतभेद है| फिर भी इस सभ्यता से सम्बन्धित स्थलों की खुदाई में प्राप्त अस्थिपंजरो और प्रतिमा-मस्तको के अध्यन से स्पष्ट होता है. कि इस सभ्यता के निर्माता विभिन्न जाति के लोग थे|

हडप्पा सभ्यता का स्वरुप

खुदाई में मिले अवशेषों से पता चलता है. कि हडप्पा सभ्यता पाषण-धातुयुग की सभ्यता थी| यह सभ्यता शंतिमुलक, लोकतंत्रीय, नगरीय और व्यापर प्रधान थी|

हडप्पा सभ्यता के नगर निर्माण योजना

हडप्पा सभ्यता की नगरनिर्माण योजना बहुत ही उच्च कोटि की थी| इस सभ्यता के सभी मुख्य नगर हडप्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा व्यवस्थित रूप से बसाए गए थे| सड़के सीधी और चौड़ी थी| सड़के एक दुसरे को समकोण पर कटती थी| मोहनजोदड़ो की मुख्य सड़क 400 मीटर लम्बी और 10 मीटर चौड़ी थी| शहर में नालियों का जल- सा बिछा था| इन नालियों से होकर गन्दा पानी बहार निकल जाता था| कूड़ा-करकट घर से बाहर बने मिटटी के बरतनया हौज में फेका जाता था|

 भवन निर्माण योजना

हडप्पा सभ्यता के खंडहरों को देखकर ऐसा लगता है. कि शहर में मकानों का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार हुआ था| मकान छोटे और बड़े दोनों होते थे| मकान ईट के बने होते थे| मोहनजोदड़ो के मकान प्रायः दो मंजिले थी| और उपर की मंजिल पर जाने के लिए सीढियाँ बनी हुई थी| मकान में एक रसोई घर और स्नान का कमरा जरुर होता था| भवनों का निर्माण सड़क के दोनों किनारे किया गया था| प्रायः सभी मकानों में कुएँ, स्नानघर और ढकी हुई नालियों का प्रबन्ध होता था| साधारण श्रेणी के मकान में दो कमरे होते थे| दो मंजिला मकान अभिजात वर्ग के लोगो के लिए होता था| हडप्पा के दुर्ग में सबसे प्रभावशाली इमारते धन्य्गारो की थी|

विशाल स्नानागार एवं अन्य सार्वजानिक स्थान

खुदाई में कुछ ऐसे मकान मिले है.जिका निर्माण सार्वजनिक उपयोग के लिए किया जाता था| मोहनजोदड़ो में एक विशाल स्नानागार मिला है| यह 180 फीट लम्बा तथा 108 फीट चौड़ा है| इसमें एक जलाशय है| तालाब तक जाने के लिए सीढियाँ बनी हुई थी| कपडे बदलने के लिए कोठरी थी| इस स्नानागर के साथ एक गर्म पानी का स्नानागार भी था| इस स्नानागर के साथ एक गर्म पानी का स्नानागार भी था|

बाजार – प्रत्येक नगर में एक बाजार की व्यवस्था थी| मोहनजोदड़ो तथा हडप्पा में सडको के पास कुछ ऐसे मकान मिले है. जो दुकान के काम में आते थे| उनके साथ बड़े गोदाम भी थे|

हडप्पा सभ्यता के विविध पहलु राजनीतिक संगठन

हडप्पा संस्कृति के लोगो के ऐसे कोई अभिलेख नहीं मिले है. जिनसे उनके शासन-व्यवस्था या राजनीति संगठन के बारे में जानकारी मिल सके| हडप्पा की खुदाई के आधार पर हीलरका मत है. कि वहाँ कुछ महत्वपूर्ण नागरिको का समूह शासन चलाता था| हंटर महोदय भी इस मत का समर्थन करते है| मैके का विचार है कि मोहनजोदड़ो में एक राज्यपाल या नगरपाल होता था| शासन की सुविधा के लिए नगर को कई भागो में बाँट दिया गया था| वर्तमान में जानकारी के मुताबिक निश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता| पर उत्खनन में पाए गए खंडहरों से ऐसा मालूम पड़ता है कि वहाँ अवश्य ही कोई संगठित शासन-व्यवस्था रही होगी| नियमित रूप से सडको की रक्षा, रोशनी का प्रबन्ध, नालियों की समुचित व्यवस्था, नगर-निर्माण योजना की एक रूपता प्रमाणित करते है. की वहाँ सुव्यवस्थित शासन-व्यवस्था अवश्य थी| फेयर सर्विसेस ने यहाँ धर्म की सत्ता की चर्चा की है|

हड़प्पा सभ्यता के आर्थिक जीवन कृषि

हडप्पा सभ्यता के लोगो का मुख्य व्यवसाय कृषि था. लोग जौ, गेंहूँ, राई, मटर, कपास आदि की खेती करते थे| वे तरबूज, खजूर अदि फल भी उपजाते थे|

पशुपालन – पशुपालन लोगो की आजीविका का दूसरा प्रमुख साधन था| बैल. भैस, बकरे, सूअर, कुत्ते, बिल्ली, ऊँट, गधा, और हाथी उनके पालतू जानवर थे|

उधोग धंधे

भवन निर्माण, बर्तन बनाना, कपडा बुनना, बढाईगिरी, हाथी दाँत के कारोबार, धातु के कारोबार इत्यादि लोगो के प्रमुख उधोग-धंधे थे| सोनार सोने-चाँदी के आभूषण बनाते थे| कुम्हार चाक पर मिटटी के बर्तन बनाते थे| वे मिटटी के खिलौने भी बनाते थे| जुलाहे ऊनी तथा सूती वस्त्र त्तैयर करते थे| माला के दाना बनाने का व्यवसाय भी विकसित था| हाथी दाँत से विभिन्न प्रकार की चीजे बनायीं जाती थी| लोहार विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शास्त्र बनाते थे| लोग नौका बनाना भी जानते थे|

व्यापर

हडप्पा सभ्यता का व्यापर भी उन्नत अवस्था में था| मोहनजोदड़ो और हडप्पा सभ्यता प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र थे| सिन्धु घटी के लोग स्थल मार्ग से व्यापर करते थे| सुमेर क्रीट, मिस्त्र, अफगानिस्तान, ईरान, एलाम आदि के साथ उनका व्यापर सम्बन्ध था| लोथल का नौका घाट व्यापर के लिए महत्वपूर्ण था| वास्तु विनियम द्वारा आयात-निर्यात होता था| यातायात के मुख्य साधन नाव, ऊँट और बैलगाड़ी थे| नाप तौल के लिए तराजू और बटखरे का प्रयोग होता था| फिरोजा और लाजवर्त ईरान तथा अफगानिस्तान से लाये जाते थे| एवं सूती कपडा और वर्तन बहार भेजे जाते थे|

हड़प्पा सभ्यता का सामाजिक जीवन

खनन से प्राप्त अवशेषों के आधार पर ही सिन्धुघाटी के निवासी के सामाजिक जीवन की कल्पना की जाती है|व्यवसाय के आधार पर सिन्धु घटी के समाज को चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है| विद्वान, यौद्धा,व्यापारी और श्रमजीवी-परिवार समाज की इकाई था|  विबिह्न्न पेशे के लोग थे. पुजारी, राजकर्मचारी, ज्योतिष, जादूगर, वैध, व्यवसायी, कुम्हार, बढाई, सोनार इत्यादि|

भोजन – सिन्धु घटी के लोग शाकाहारी और माँसाहारी दोनों थे| वे फलियाँ, खजूर, निम्बू, दल, सब्जी, दूध, घी, मिठाई, रोटी, छुहारा आदि खाते थे| भोजन में अनार और केले आदि का भी स्थान था| वे लोग माँस और मछली भी खाते थे|

वस्त्र और वेशभूषा

मोहनजोदड़ो के निवासियों के वस्त्र का अनुमान वहाँ से प्राप्त मूर्तियों अथवा मुहरो पर जो चिन्ह उत्कीर्ण है उसी से लगाया जाता है| मोहनजोदड़ो की खुदाई में पर्याप्त संख्या में सूत लपेटने वाला परेता मिला है| इससे पता चलता है कि वहाँ प्रत्येक घर में सूत काटने की प्रथा थी| स्त्रियाँ छोटा घगरा पहनती थी जो कमरबंद से कसा रहता था| पुरुष कपडे की लम्बी शाल शारीर पर ओढ़ लेते थे| सूती और ऊनी दोनों प्रकार के कपडे का इस्तेमाल करते थे| स्त्रियाँ को अपने केश तरह तरह से सजाने का शौक था| वे केशो के भांति-भांति से गुथती थी| स्त्री पुरुष दोनों टोपियो का व्यवहार करते थे. स्त्री और पुरुष दोनों को आभूषण पहनने का शौक था| पुरुष ताबीज बाँधते थे और स्त्री कंगन और हार पहनते थे| स्त्रियाँ सिर पर एक विशेष परिधान धारण करती थी. जो पंखे की तरह पीछे की और उठा रहता था|

मनोरंजन के साधन

संगीत, नृत्य, खेल-कूद, पशु युद्ध, गेंद, गोली, चौपड़, पाशा तथा शतरंज आमोद-प्रमोद के मुख्य साधन थे| पक्षी और जानवरों का शिकार करना भी आमोद-प्रमोद का एक अच्छा साधन था|

बच्चो के मनोरंजन के लिए मिटटी के पशु-पक्षी, स्त्री-पुरुष, झुनझुने और सीटियाँ, मिटटी की छोटी-छोटी गाड़ियाँ और कुर्सियाँ बड़ी संख्या में मिली है|

हड़प्पा सभ्यता का धार्मिक जीवन

सिन्धु घटी के निवासीयो के धर्म का ज्ञान हमे उत्खनित मुहरो, तबीजो, मूर्तियों से होता है| उनपर उत्कीर्ण चित्रों से ही उनके धर्म के बहरी रूप का बोध होता है| वे अनेक देवी-देवताओ की पूजा करते थे| वे लोग मर्तदेवी की भी पूजा करते है| शक्ति पूजा, देवी पूजा आदि का प्रचलन था| उस समय शिव पूजा की प्रथा भी प्रचलित थी| उस समय लोग प्राक्रतिक शक्तियों अग्नि, जल, वायु की भी उपासना करते थे| नागपूजा तथा वृक्ष पुजा भी प्रचलित थी|

मृतक संस्कार

सिन्धु घटी के लोग मुर्दों को या तो भूमि में गढ़ देते थे अथवा उन्हें जला दिया जाता था| शावोके साथ सभी आवश्यक वस्तुओ को गाड़ने की प्रथा थी| शवो के साथ आभूषण, अस्त्र-शस्त्र, और पटाखे भी मिले है|

कला-कौशल भवन निर्माण कला

हडप्पा सभ्यता के लोग भवन निर्माण कला में काफी दक्ष थे| सीढियाँ से युक्त पक्के दो मंजिला मकान बना लेना कम आश्चर्य की बात नहीं थी|

मूर्तिकला तथा चित्रकला

मूर्तिकला तथा चित्रकला के भी कई- प्रकार के नमूने मिले है| इनमे भाव व्यंजन की अच्छी झलक है| नर्तकियो की मूर्तियों से स्पष्ट होता है कि वहाँ की मूर्तिकला काफी उन्नत थी| मुहरो पर सबसे अच्छी चित्रकारी सांड और भैस की है| सांड का चित्र अत्यन्त सजीव और सुन्दर है|

पात्र निर्माण कला – हडप्पा सभ्यता के लोग मिटटी के बर्तन के कला में निपुण थे| चाक से बने बर्तनों पर चित्र भी बने है|

धातुकला – धातुओ से आभूषण और विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ बनायीं जाती थी| सोना-चाँदी तथा ताँबे के आभूषण बनते थे|

लेखन कला – खुदाई में मुद्राओ, ताम्रपत्र और मिटटी के बर्तनों पर कुछ लिखा मिला है जो अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है| संभवतः हडप्पा सभ्यता के लोग चित्रात्मक लिपि से परिचित थे|

विज्ञान एवं तकनीकी की प्रगति

हडप्पा सभ्यता के निवासियों ने विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की थी| उन्हें रसायन-विधा, धातु, औषधि, और शल्य क्रिया का ज्ञान था| वे तांबा और टिन को मिलकर कांसा तैयार करना जानते थे| उन्हें धातु गलने और रंगों के प्रयोग की कला का ज्ञान था| मोहनजोदड़ो से शिलाजीत के व्यवहार का प्रमाण मिला है. कालीबंगा और लोथल से खोपड़ी की शल्य-चिकित्सा के प्रमाण मिले है|

हडप्पा सभ्यता की देन

हडप्पा सभ्यता आज से लगभग पाँच हजार वर्ष पहले नष्ट हो गयी| पर भारतीय समाज और संस्कृति पर अमिट छाप छोड़ गयी| आज भी कुम्हार उसी तरह चाक पर बर्तन बनाते है| पुरुष आज भी ग्रामीण इलाका में उसी तरह का वस्त्र धारण करते है और स्त्रियाँ उसी तरह गहनों का व्यवहार करती है| पाशा और सतरंज आज भी लोग खेलते है| बच्चो के मनोविनोद के लिए तरह-तरह के खिलौने बनाएँ जाते है| श्रृंगार प्रसाधन की अनेक सामग्रियाँ जैसे काजल, उबटन सभी स्त्रियों को प्रिय है|

जल. वृक्ष, मर्तदेवी, शिव, नागलिंग-योनी, शक्तिपूजा और उपासना का प्रारम्भ सिन्ध प्रदेश में हुआ और उसका प्रभाव अब भी भारतीय धार्मिक जीवन पर है| योगाभ्यास, जादू-टोना, आदि को संभवतः हिन्दुओ ने हडप्पा वालो से अपनाया होगा| आज भी पीपल, नदी, नाग, सांड, गाय आदि की पूजा होती है| आज भी हम सूर्य और अग्नि की पूजा करते है| मूर्तिकला की नीव हडप्पा सभ्यता में ही पड़ी थी| वहाँ लाल पालिश पर काले रंग से जो चित्रण हुआ है वह शैली विश्व के किसी अन्य देश को ज्ञात नहीं थी|

हड़प्पा सभ्यता का पतन कैसे हुआ

हडप्पा सभ्यता का लगभग 1750 ई.पू अंत हो गया| इस सभ्यता का अंत कैसे हुआ इसका निश्चित रूप से पता नहीं चलता है| पर विद्वानों का अनुमान है कि नदी में बढ़ आ जाने, नदी की धारा बदल जाने, समुद्र का जलस्तर ऊपर उठ जाने, अकाल पड़ जाने, या भूकम्प होने या विदेशी आक्रमण होने के कारन ही इस सभ्यता का अंत हो गया| अधिकांश विद्वानों का मत है. कि इस सभ्यता का पूर्ण विनाश का कारण विदेशी आक्रमण ही है| उन आक्रमणकरियो में आर्यों का स्थान प्रमुख था| इस बात का प्रमाण आर्यों के धर्म-ग्रंथो में भी मिलता है|

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