समास किसे कहते हैं, समास संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है – संक्षेपीकारण या छोटा करना| जैसे – ‘राजा का पुत्र’ को संक्षित करके ‘राजपुत्र’ शब्द बनाया जाता है| इस संक्षेपीकरण की विधि को समास कहते है| समास की परिभाषा, परस्पर सम्बन्ध रखने वाले दो या दो से अधिक शब्दों के संयोग को समास कहते है| जैसे –
राजा की कन्या = राजकन्या
दल और रोटी = दलरोटी
नील कमल = नीलकमल
गगन को चूमने वाला = गगनचुम्बी
तीन लोको का समूह = त्रिलोकी
शरण में आया हुआ = शरणागत
मुहावरे एवं लोकोक्ति में क्या अंतर है,
समस्तपद – समास करने के बाद जो शब्द बन जाता है| उसे समस्पद कहते है| जैसे – राजपुत्र, हवन सामग्री, यथाशक्ति, नीलकमल
समास पद के प्रथम पद को पूर्व पद और दूसरा को उत्तर पद कहते है| जैसे – राजपुत्र में ‘राज’ पूर्व पद है| और ‘पुत्र’ उतर पद है|
विग्रह – समस्त शब्द को पुनः पहले जैसी अवस्था में अलग करने की विधि को विग्रह कहते है| जैसे –
समस्त पद | विग्रह |
---|---|
राजपुत्र | राजा का पुत्र |
हवन सामग्री | हवन के लिए सामग्री |
यथाशक्ति | शक्ति के अनुसार |
समास के प्रकार
समास के निम्नलिखित 6 भेद होते है|
1 . अव्ययीभाव समास
जिस सामासिक पद में पूर्व पद प्रधान हो और वह अव्यय हो तथा उसके योग से समस्त पद भी अव्यय बन जाए, उसे अव्ययीभाव समास कहते है| जैसे –
यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार
प्रतिदिन = प्रत्येक दिन
भरपेट = पेट भर कर
बीचोबीच = ठीक, बीच में
हाथोहाथ = हाथ ही हाथ में
2 . तत्पुरुस समास
जिस सामासिक पद का उतर पद प्रधान होता है, उसे तत्पुरुष समास कहते है| इसमें समास पद का पहला पद संज्ञा या सर्वनाम होता है| इन समासो में दोनों पदों के मध्य आने वाले परसर्गो का लोप हो जाता है| तत्पुरुष समास में जिस कारक का विभक्ति का लोप हो, उसी नाम से ही ‘समस्पद’ पुकारा जाता है| तत्पुरुष के 6 कारक है|
कर्म तत्पुरुष
ग्रामगत = ग्राम को गत (गया हुआ)
स्वर्ग – प्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त
कारण तत्पुरुष
शोकाकुल = शोक से आकुल
मनमाना = मन से माना हुआ
सम्प्रदान पुरुष
युद्ध भूमि = युद्ध के लिए भूमि
देशभक्ति = देश के लिए भक्ति
अपादान तत्पुरुष
धर्म-भ्रष्ट = धर्म से भ्रष्ट
देश- निकलना = देश से निकलना
सम्बन्ध तत्पुरुष
गंगाजल = गंगा का जल
घुडदौड़ = घोड़ो की दौड़
अधिकरण तत्पुरुष
आपबीती = अपने पर बीती
वनवास = वन में वास
इनके अतरिक्त तत्पुरुष समास का एक अन्य उपभेद भी है:
नञ् तत्पुरुष – आभाव या निषेध अर्थ प्रकट करने के लिए किसी शब्द से पूर्व ‘अ’ या ‘अन’ लगाने से जो समास बनता है, उसे नञ् तत्पुरुष कहते है| जैसे –
अधर्म = न धर्म
अनादर = न आदर
असम्भव = न सम्भव
अन्याय = न न्याय
अनर्थ = न अर्थ
अनुचित = न उचित
3 . कर्मधारण समास
जिस समास के दोनों पदों में ‘विशेषण- विशेष्य’ अथवा ‘उपमान-उपमेय’ का सम्बंध होता है, उसे कर्मधारय समास कहते है| इस समास में उत्तर पद प्रधान है| जैसे –
विशेषण- विशेष्य
महादेव = महान देव
महात्मा = महान आत्मा
उपमान-उपमेय
मुखचन्द्र = मुख रूपी चन्द्र
कमलयान = कमल के समान नयन
4 . द्विगु समास
जिस समास में पूर्व पद संख्यावाचक विशेषण हो और समूह का बोध कराए, उसे द्विगु समास कहते है| इससे समूह अथवा समाहार का बोध होता है| जैसे –
त्रिलोकी = तीन लोको का समूह
नवग्रह = नौ ग्रहों का समूह
शताब्दी = सौ शब्दों (वर्षो) का समूह
चतुर्भुज = चार भुजाओं का समूह
5 . द्वंद समास
जिस समास में दोनों खण्ड प्रधान हो और विग्रह करने पर ‘और’, ‘तथा’, ‘एवं’, ‘अथवा’, ‘या’ लगता हो वह द्वंद समास होता है| जैसे –
राम-लक्षण = राम और लक्ष्मण
दाल-रोटी = दाल और रोटी
सीता-राम = सीता और राम
माँ-बाप = माँ और बाप
खरा-खोटा = खरा और खोटा
6 . बहुव्रीही समास
जिस समास के समस्त पद में कोई भी पद प्रधान न होकर कोई अन्य पद प्रधान हो, उसे बहुव्रीही समास कहते है| इस समास द्वारा बनने वाला पद विशेषण का काम करता है जैसे –
दशानन = दस है आनन (मुख) जिसके – रावण
नीलकंठ = नीला है कंठ जिसका – शिवजी
पीताम्बर = पीत ( पीले ) है अम्बर (वस्त्र) जिसके – श्रीकृष्ण
लम्बोदर = लम्बा है उदार (पेट) जिसका – गणेश जी
चक्रपाणी = चक्र है हाथ में जिसके – विष्णु, श्रीकृष्ण
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