हमारे प्राकृतिक संसाधन

भगवान का दिया हुआ मनुष्य के लिए प्राकृतिक संसाधन एक वरदान है. प्राकृतिक संसाधन अगर धरती पर नहीं होता तो मानव जीवन कैसा होता ये सभी को पता है. श्याद आज हमलोग विकास के क्षेत्र में पीछे होते, और टेक्नोलॉजी हमसे कोसो दूर होता,  प्राकृतिक संसाधन का विशाल भंडार होने के चलते मनुष्य ने अपना कदम बहुत आगे तक बढाया, भगवान का दिया हुआ प्राकृतिक संसाधन का सही इस्तेमाल करके अपने और अपने क्षेत्र का विकास किया, आगे हम विस्तार से प्राकृतिक संसाधन के बारे में चर्चा करेंगे. जिसमे जानेगे की भगवान ने किस तरह और कितने तरह के प्राकृतिक संसाधन से धरती के गोद को भरा है.

प्राकृतिक संसाधन क्या है|प्राकृतिक संसाधन किसे कहते हैं

हमारे धरती में चट्टान, मिटटी, खनिज, जल, वायु, सूर्य उर्जा, पेड़ – पौधे, जीव-जंतु, ये सभी प्राकृतिक देन है. जिसका इस्तेमाल मनुष्य अपनी जरुरत को पूरा करने एवं अपनी विकास के लिए करता रहता है. इस प्राकृतिक देन को ही प्राकृतिक संसाधन कहते है.

छोटानागपुर के लोग जब जंगली जानवरों के शिकार और खेती बड़ी करते थे. तब वहां के विशाल खनिज भंडार का कोई भी महत्त्व नही था. क्योंकि लोग इसका उपयोग नही कर रहे थे. जिसे हमलोग इसको प्राकृतिक संसाधन नही बोल सकते है.

प्राकृतिक संसाधन का महत्व

जब लोगो इस खनिज भंडार का महत्त्व को समझा और तकनीक और कुशलता से जमीन के अन्दर के खनिज को खोदकर निकला और उसको उपयोग करना शुरू किया तो ये खनिज प्राकृतिक संसाधन बन गए. उसी तरह से कर्णाटक राज्य के जोग जलप्रपात जो कल तक जल कि धरा में बहता रहा, परन्तु जब इस जल धारा के शक्ति का विकास के रूप में इस्तेमाल करने लगा, तो ये प्रक्रितक संसाधन के रूप में उभर कर सामने आने लगा. नदियाँ तभी प्राकृतिक संसाधन बन पाती है. जब इसका उपयोग सिंचाई, बिजली उत्पादन. मछली पालन, और भी अनेक तरह कार्यो में किया जाता है. इसका मतलब यही होता है. संसाधन हुआ नही करते है. बना करते है.

प्राकृतिक संसाधन का विकास

प्राकृतिक कि जो भी वस्तु है. जिसे हम उपयोग कर सकते है. उससे हमे आर्थिक लाभ पहुँचता है. उसे हम प्राकृतिक सम्पदा या फिर प्राकृतिक संसाधन कि संज्ञा दे सकते है.

अगर देखा जाए, तो पुरे विश्व में खनिज सम्पदा बिखरा पड़ा है. जिसमे मनुष्य सबसे पहले पता लगता है. फिर उसे अपनी दिमाग से, तकनीक ज्ञान और कुशलता से अपने जरूरत को पूरा करने का योजना बनता है. और फिर इसका इस्तेमाल करता है. उसके बाद ही इसे प्राकृतिक संसाधन का सही रूप दे पता है.

परिवहन और अनेक तरह कि सुविधा, तकनीका विकास ने प्राकृतिक संसाधन का महत्त्व को बढाया. जिसमे सभी क्षेत्र का आर्थिक रूप से विकास का अवसर प्रदान किया.

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क्या मानव प्राकृतिक संसाधन है 

अब जो सवाल उठता है. कि मनुष्य को प्राक्रतिक संसाधन के अंतर्गत रखा जा सकता है. कि नहीं, अगर मनुष्य इस धरती पर नही रहेंगे, तो जितनी भी प्राकृतिक संसाधन है. वो ऐसे ही पड़े रहेंगे,

  • क्योंकि मनुष्य ही है. जो खेती करता है,
  • मछली पालन का काम करता है.
  • जंगलो को काटने का काम करता है.
  • बहते जल से बिजली उत्पादन करता है.
  • पर्वत पहाड़ को काटकर पर्यटन स्थल बनता है.

मनुष्य के बिना कृषि योग्य भूमि  पड़ी रह सकती है. कीमती लकड़ी के जंगल खड़े रह सकते है. कोयला बेकार वस्तु के रूप में धरती के अन्दर दबा रह सकता है. और नदियों का पानी समुद्र में बहता रहेगा. वो मनुष्य ही है,  जो प्राकृतिक संसाधन को सही मूल्य एवं सही आकार में लता है.

इसलिए इससे ये ही निष्कर्ष निकलता है. कि जो मनुष्य सक्षम, क्रियाशील, और उन्नत है. तो वो प्राकृतिक संसाधन के अंतर्गत आता है.

प्राकृतिक संसाधन का वर्गीकरण

संसाधन को दो भागो में रखा जा सकता है.

1. प्रकृतिप्रदत अर्थात वे वास्तु जो मनुष्य अपने उपयोग में लता है,

2. प्राकृतिक का सर्वक्षेष्ट प्राणी मनुष्य जो अपनी दिमाग, क्षमता और तकनिकी ज्ञान से प्राकृतिक वस्तु को उपयोग में लाता है. जिसे हम प्राकृतिक संसाधन या मानव संसाधन कहेंगे.

प्राकृतिक संसाधन जैसे मिटटी, जल, जंगल, प्राकृतिक वातावरण में मौजूद है. जिसमे कुछ का संबंध जलवायु और भोगोलिक स्थिति से है.

प्राकृतिक संसाधन के दो भाग है.

आपूर्तिसंभव – वायु, जल, और सौर उर्जा जो आर्थिक विकास के साथ इसका उपयोग बढता जा रहा है. जो पृथ्वी में हमेशा से रहा है. जो समाप्त होने सवाल ही नही उठता, लेकिन पेड़ – पौधे, जंगल, जीव जंतु, खनिज के मामले में ऐसी बात नही है.

अगर सीधे शब्दों में कहे तो जो वस्तु पेड़ – पौधे से हमे मिलता है. जिसे हम हर साल उगा सकते है. उसे हम आपूर्तिसंभव संसाधन कहते है. जैसे – जंगल से लकड़ी, रेशम से प्राकृतिक रेशे, चावल, गेंहू,अनाज, जीव – जंतु कि प्रजनन से बढ़ोतरी आदि

अपुर्य – संसार में जितने भी खनिज है. जिसका उपयोग होने पर घटता है. और समाप्त होने पर फिर से इसे उत्पन्न नहीं किया जा सकता है. उसे अपुर्य संसाधन कहते है. जैसे – कोयला, खनिज तेल, अबरक आदि

विकास के आधार पर संसाधन को दो भागो में बांटा गया है.

संभव्य  संसाधन – इस तरह के संसाधन में, किस देश में कितना खनिज का भण्डार है. यह सही से कोई भी नही बता सकता है. लेकिन खनिज होने संभावना जरुर कर सकते है. ऐसे संसाधन को संभव्य संसाधन कहते है.
ज्ञात संसाधन – किसी भी देश में सर्वे करके खनिज के भंडार का पता लगाया जाता है. उसे हम ज्ञात संसाधन कहते है. कोई भी संसाधन हो मानव संसाधन के विकास पर ही निर्भर करता है.

प्राकृतिक संसाधन प्रकार एवं उपयोग| प्राकृतिक संसाधन कौन-कौन से हैं

अब हम उन प्राकृतिक संसाधन के बारे बात करेंगे जिसमे हम  निर्भर रहते है.

भूमि संसाधन 

हमारी आवश्यकता भूमि से ही पूरी होती है. घर बनाना, आने जाने के लिए रास्ता, कृषि के लिए खेत, खनिज और व्यापर केंद्र भी भूमि पर स्थित है. भूमि अगर पठारी है. और खनिज से भरा पड़ा है. तो उसको निकलकर उपयोग किया जा सकता है. बाद में इसे समतल कर सड़क मार्ग का भी रूप दिया जा सकता है. यदि भूमि समतल है. और पानी कि सुविधा है. तो उसमे भरपूर खेती किया जा सकता है. अगर भूमि पहाड़ी है. तो इसमें फलो का भी उत्पादन किया जा सकता है.

मिटटी संसाधन

मनुष्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संपति मिटटी है. वैसे मिटटी कि निर्माण कि प्रक्रिया बहुत धीमी होती है. मोटी मिटटी  परत के निर्माण में हजारो साल का समय लग सकता है. कृषि पूर्ण रूप से उपजाऊ मिटटी पर ही निर्भर रहती है.

मिटटी चट्टान के टूटने, चूर होने और भौतिक, रासायनिक एवं जैविक परिवर्तन से मिटटी बनती है. मिटटी कि सबसे उपरी हिस्सा जिसमे पौधे एवं जीव – जंतु के सड़े गले अवशेषो के सूक्षम कण तथा जैविक पदार्थ पाए जाते है. बीच का हिस्सा में उपरी परत से हटाये गए पदार्थ के रीशे हुए जल मिलता है. और सबसे अंतिम वाले हिस्से में मूल चट्टान मिलती है.

भौतिक गुण और आकार – प्रकार के माध्यम से मिटटी को तीन भागो में बांटा गया है.

बलुई मिटटी (sandy soil)  – इस तरह कि मिटटी चिकनी मिटटी कि अपेक्षा बालू का मात्रा अधिक होता है. इस तरह कि मिटटी में जल सोखने कि शक्ति अधिक रहती है.

चिकनी मिटटी (clayey soil) –  इस तरह कि मिटटी में गद (विष ) कि मात्रा अधिक होती है. ये मिटटी सुख जाने पर कड़ा हो जाता है. तथा गिला होने चिपछिपी या लसलसी हो जाती है. इस तरह कि मिटटी में जुताई करना काफी मुश्किल हो जाता है.

दोमट मिटटी (loamy soil) – इस तरह के बालू में चिका ( चुना , लोहा ,क्ले ) का मिश्रण बराबर मात्रा में होता है. जो कृषि के लिए बहुत उपयोगी है. इसमें गहरी तक जोताई हो सकती है. गंगा के क्षेत्र अधिक देखने को मिलेगा.

उत्पति के आधार पर मिटटी के दो भाग है.

स्थानीय मिटटी – जो मूल चट्टान के टूटने एवं चूर होने से बनी है. छोटानागपुर में ग्रेनाईट और नईस चट्टान के कण से बनी लाल मिटटी इसी प्रकार कि है. दक्षिण भारत के लावा प्रदेश में बैसाल्ट के टूटने से बनी काली  मिटटी स्थानीय प्रकार की है.

स्थान्तरित मिटटी – जो मिटटी नदी द्वारा बहा कर या अपनी मूल स्थान से हटकर कही दुसरे जगह मिलती है. या नदियों द्वारा दोनों किनारों तथा डेल्टावो में जमा होती है. जो बहुत उपजाऊ होती है. इसके अलावा हवा द्वारा उड़ा कर लायी गयी मिटटी जो मरुस्थल के निकट पाई जाती है. इस तरह कि मिटटी स्थान्तरित मिटटी के अंतर्गत आता है.

कुछ मिटटी का उर्वरक कम होता है. जिसे हम अपनी तकनिकी ज्ञान से उसे उपजाऊ लाइक बनाते है. बार – बार एक ही फसल को उगने से मिटटी कि शक्ति में कमी आती है. या मिटटी कि कटाई से भी उर्वरक शक्ति कम होती है.

जल संसाधन

पेड़ – पौधे, जीव – जंतु, फसल का अस्तित्व पानी पर ही निर्भर है. घरेलु कामो में पानी का उपयोग तो होता ही है. इसके अलवा कारखाना, सिंचाई, में भी पानी कि जरुरत होती है. झील, सागर, महासागर, में यातायात मार्ग बनाये जाने के चलते भी इसका महत्त्व बढ़ा है. बड़े – बड़े जलाशय से सिंचाई का काम लिया जाता है. जल संसाधन का उपयोग बढ़ता जा रहा है.

जल दो प्रकार के होते है.

मीठा जल – नदी, तलब, कुआँ, चापाकल का पानी मीठा होता है. यानि पेय योग्य है. मीठा जल का सबसे बड़ा झील सुपीरियर और सबसे गहरी झील बैकाल और सबसे ऊँची झील टिटिकाका है. गंगा जल पुरे विश्व में सबसे अधिक पवित्र मन जाता है. लेकिन आज के समय में गंगा प्रदूषित होने लगा है.

खरा जल – सागर और महासागर का पानी खरा होता है. खरे झील कि सबसे बड़ी झील कास्पियन सागर और सबसे गहरी झील मृतसागर है. जल यातायात के लिए सेंट लारेंस और राईन नदियाँ सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. दोनों ही प्रकार के जल में मछली पाई जाती है. लेकिन बड़े और विशाल आकार कि मछली केवल महासागर में ही पाई जाती है.

बहुत सरे ऐसे जगह है. जहाँ बर्फ के रूप में जल रहता है. परन्तु जब ये बर्फ पिघलते है. तो हमे मीठे जल के रूप में प्राप्त होते है. इतना ही नही वर्षा जल रिसकर धरातल में चला जाता है.जिसे हम कुआँ के रूप खोदकर मीठे जल को निकलते है. इसके अलावा नलकूप और मोटर पंप कि मदद से भी हम भूमिगत जल का प्रयोग अधिक करते है. भूमिगत जल कि गहराई एक जैसे नही रहती है. ये मौसम के अनुसार बदलते रहता है. गर्मी के मौसम में भूमिगत जल बहुत निचे चला जाता है.

वन संसाधन

पेड़ – पौधे वायुमंडल से कार्बन डाई आक्साइड लेकर आक्सीजन छोड़ते है. पेड़ो द्वारा मिटटी के कण को बंधे रखता है. पशु – पंछी के लिए आवास प्रदान करता है. एवं वर्षा कराने में सहायता करता है. इसके अलावा लकड़ी के फर्नीचर, कागज, कृत्रिम रेशम आदि तैयार करने में.

आज के समय में वनों का उपयोग जादा होने लगा है. क्योंकि वनों से प्राप्त होने वाली गौण पदार्थ कि मांग लगातार बढती जा रही है. ओधोगिक क्रांति के बाद बड़े पैमाने में वनों का हार्समेंट हुआ है. भारत के कई जगह में कोयला, इंधन के लिए जंगल कि अँधा धुन कटाई हुई है. जिस जगह में अब केवल झाड़ियाँ दिखाई देती है. ऐसे ही राजस्थान कि वनों के नष्ट होने से वहां कि भूमि मरुस्थल में तब्दील हो गयी. इसके अलावा कीड़े, दीमक आदि से वनों को भी नुकसान पहुँचती है.

पशु संसाधन

प्राकृतिक ने भूमि एवं जल दोनों स्थलों पर जीव – जंतु को जीवन दिया है. जो एक दुसरे पर भोजन के लिए निर्भर रहते है. छोटी जीव, बड़े जीव के लिए भोजन प्रदान करती है. इसको हम दो वर्गो में बाँट सकते है. जंगली जीव और पालतू जीव

जंगली जीव के अंतर्गत  जंगली जानवर, पंक्षी और मछली शामिल है. बाघ, शेर, हाथी, जिराफ, ज़ेबरा, कंगारू आदि को हम बड़े पैमाने में पल कर नही रख सकते है. पालतू जीव मनुष्य कुछ ही जानवर को पल का रख सकता है. जैसे गाय, भैस, मुर्गी, बकरी, आदि जो प्राचीनकाल से ही पलता आया है. कृषि के लिए खाद पदार्थ कि जरुरत भी पूरी होती है. इन पशु के मॉल मूत्र से जैविक खाद बनता है. जिसे हम भूमि को कृषि योग्य बनाते है. जिसे पैदावार भी अच्छी होती है.

वन्य पशु

मनुष्य के लिए कम लाभदायक है. भोजन के अनुसार इसे तीन भागो में रखा जा सकता है.

तृणभोज – जो आकार में बड़े और मंद होते है. जैसे हाथी

मांसाहारी – जो दुसरे जानवरों का मांस खा कर जिन्दा रहते है.
सर्वभक्षी – जो घास और मांस दोनों खाते है.
कुछ पशु ऐसे है. जो जल और स्थल दोनों जगह रहते है. तो चीटी और दीमक जैसे कीड़े मकोड़े भी मिलते है. इसके अलावा हिरण, भालू, लोमड़ी, शेर, चिता, हाथी, जैसे जंगली जानवर पाए जाते है.

पालतू पशु

पालतू जानवर बहुत तरह के होते है. और ये विश्व के अलग अलग जगह में पाए जाते है. जैसे – गाय, भैस, भेड़, बकरी,सूअर, घोड़े, खचर, गधा आदि. जो मानव संख्या के लगभग बराबर है. इनमे से गाय, भैस, बैल कि संख्या अधिक है. पालतू पशु कि संख्या सबसे अधिक एशिया में है.

जैविक संसाधन आधुनिक विश्व कि अर्थवयस्था में रीढ़ कि हड्डी कि तरह काम करता है. और हमारा जीवन भी बहुत हद तक इन उत्पादों पर टिका हुआ है. निम्न कारणों से पशु पलने जी जरुरत पड़ती है.

दूध और दूध से बने पदार्थ

दूध से मक्खन, पनीर, घी, मलाई आदि प्राप्त होते है. जहाँ अच्छी जलवायु मिलती है. अच्छी वर्षा, सामान्य तापमान ताकि चारे के लिए पर्याप्त घास उग सके. वैसे स्थान में दूध का बिजनेस अपनाया जाता है. जैसे – पश्चिमी यूरोप, अमेरिका, कनाडा, रूस, न्यूजीलैंड में आदि

ठण्डे देशो में मांस कि मांग बराबर बनी रहती है. विश्व के कई क्षेत्र में मांस के लिए पशुओ को पाला जाता है. जैसे चीन, जर्मनी, ब्राजील, रूस आदि,

भेड़ो से उनी वस्त्र तैयार करने के लिए हमे उन प्राप्त होता है. जो विश्व का दो तिहाई ऊन आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, एवं दक्षिण अफ्रीका से प्राप्त होता है. भेड़ पलने के लिए शुष्क जलवायु कि जरुरत पड़ती है. जहाँ  छोटी घास उगती हो, इस तरह ठण्डे मौसम में हमे ऐसे ऊनी कपड़ो की जरुरत भेड़ो के ऊन से पूरा हो पाता है. इसके अलावा खेतो के लिए जैविक खाद भी मिलता है. जिसे भूमि को अच्छा उपजाऊ बनाकर पैदावार बढ़ा सके

खनिज प्राकृतिक संसाधन

इसमें वे सभी खनिज पदार्थ आते है. जिसे हम खान कि खुदाई करके प्राप्त करते है. जैसे – कोयला, पेट्रोलियम, सोना, चाँदी, या कीमती पत्थर आदि

खनिज प्राकृतिक रासायनिक तत्व या योगिक है. जो अकार्बनिक परिक्रिया से बनता है. इसके अंतर्गत कोयला पेट्रोलियम, गंधक या वे चट्टान आते है. जो खुद खनिज के मिश्रण से बने होते है. खनिज एक प्राकृतिक संपदा है. जिसे समाप्त होने पर दोबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता.

खनिज का वर्गीकरण

इसको दो भागो में रखा गया है.

धात्विक खनिज – लोहा, तांबा, धात्विक खनिज के उदहारण है. ये खनिज अयस्क के रूप में पाए जाते है. जिसमे बहुत सारे धातु दुसरे पदार्थ के साथ मिश्रित भी रहते है. जिसे तकनीकी विधि से शुद किया जाता है.

अधात्विक खनिज – अधात्विक खनिज में धातुओ कि कमी रहती है. और ये अयस्क के रूप में नहीं मिलती है. अधात्विक खनिज उर्वरक के रूप में, रत्न एवं मणि के रूप या कंकड़ पत्थर के रूप में, रूप में मिलती है. और इसी रूप में इसे इस्तेमाल किया जाता है. जैसे – बालू, कंकड़, गंधक,खनिज तेल, अबरक, कोयला, आदि अधात्विक खनिज के उदहारण है.

विश्व में प्राकृतिक संसाधन

खनिज के दो उलेखनीय वर्ग भी है

आधारभुत – लोहा, तांबा, कोयला, आदि आधारभूत खनिजो के उदहारण है. जिसे उधोग धंधा के लिए आधार मने जाते है.

सामरिक – कई खनिज ऐसे है. जिसका महत्त्व राष्ट्र के सुरक्षा के लिए जरुरी है. जैसे – युरेनियम, थोरियम, इसे सामरिक खनिज कहते है. इसके अलावा लोहा, मैगनीज, अबरक आदि को गिनती भी सामरिक खनिजो में होती है.

खनिज ईंधन

कोयला – अमेरिका, रूस, यूक्रेन, चीन, दक्षिण अफ्रीका, जर्मनी, भारत, ऑस्ट्रेलिया,इत्यादि

पेट्रोलियम – रूस,अमेरिका, चीन, मक्सिको, सऊदी अरब, ईरान, इराक, नाइजेरिया |

प्राकृतिक गैस – अमेरिका, रूस, तुर्कमेन, यूक्रेन, कनाडा, यूरोपीय देश ( नीदरलैंड, रूमानिया, यूनाइटेड किंगडम, नार्वे, जर्मनी, इटली )

परमाणु खनिज – अमेरिका, जापान, रूस, कनाडा, यूरोपीय देश ( यूनाइटेड किंगडम, बेल्जियम, स्पेन, स्विट्जरलैंड, फिनलैंड, इटली, स्वेडन |

धात्विक खनिज

लोह अयस्क – रूस, ब्राजील, चीन, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, भारत, स्वेडन, स्पेन, यूनाइटेड किंगडम |

मैंगनीज – रूस, दक्षिण अफ्रीका, गेबन, भारत, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, चीन, घाना |

तांबा – अमेरिका, चिल्ली, रूस, जायरे, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, पौलैंड, पेरू |

बाक्साइट – ऑस्ट्रेलिया, जमैका, सूरीनाम, गिनी, घाना, रूस, गायना, फ्रांस, ग्रीस |

अधात्विक खनिज

अबरक – भारत, ब्राजील

नोट – खनिज ईंधन में कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस को जीवाश्म ईंधन कहा गया है. जो विश्व का 90% उर्जा इन्ही से उत्पन्न किया जा रहा है. और बाकी बचे 10% उसमे जल विधुत शक्ति और परमाणु शक्ति शामिल है.

शक्ति के विभिन्न साधनों के बारे में विस्तार से समझेंगे

खनिज ईंधन ही शक्ति के प्रमुख साधन है. लेकिन ये अपुर्य संसाधन के अंतर्गत अत है. यानि एक बार इसकी भण्डार ख़त्म होने पर फिर से इसकी उत्पादन नही हो सकती. इसके अलावा शक्ति के कुछ ऐसे साधन भी है. जो समय समय पर प्राकृतिक द्वारा भरपाई होती रहती है. जैसे – सौर उर्जा, पवन शक्ति, जल शक्ति, ज्वारीय शक्ति आदि |

कोयला – आज से लगभग 50 साल पहले विश्व का 90 प्रतिशत औधोगिक शक्ति कोयले से प्राप्त होती थी. जिसका उपयोग अमेरिका जैसे कई देशो ने औधोगिक क्षेत्र में प्रगति कि है. परन्तु जब से पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, जल विधुत, अणुशक्ति का उपयोग होने लगा, तब से कोयले कि खपत में कुछ कमी आई है. फिर भी इसका महत्त्व घटा नही है. आज भी कोयला से लोहा – इस्पात उधोग और भाप से बनने वाली बिजली में इसका बहुत बड़ा योगदान है.

यह  भारी होता है. और अधिक जगह भी लेता है. इसको दुसरे  जगह भेजने के लिए  ढूलाई खर्चा अधिक होता है. लेकिन पेट्रोलियम को पाइप के माध्यम से या तेल टैंकर जहाज से बड़ी आसानी दुसरे जगह भेजा जा सकता है.

इसको जलाने पर  रख  में तब्दील होता है. जिसको हटाने में खर्चा अत है. लेकिन पेट्रोलियम में ऐसे कोई परेशानी नही है. इसके बावजूद भी  कोयला लम्बे समय तक उपयोगी बना रहेगा.

कोयले का निर्माण

कोयले कि प्राप्ति अवसादी शैलो में होती है. यानि प्राचीन काल के समय में वनों के दब जाने से उनका वायु संपर्क टूट गया, जिसके चलते वे अपघटित होकर वनस्पति तथा जीवाश्म बनकर कोयले के रूप में परिवर्तित हो गए.

कोयला बनने का दो प्रमुख युग “कार्बनी और टर्शीयरीकल” का कोयला कहते है. भारत और विश्व में 75% कोयला कार्बनीकाल का है.

कोयले में कार्बन तत्व कि मात्रा जितनी अधिक होगी, उतना ही अधिक उर्जा उत्पन करने करने कि क्षमता होगी. इस तरह से कोयले को कई तरह की श्रेणी मे रख गया है.

ऐन्थरासाईट – इस तरह के कोयले को सबसे अच्छा मना जाता है. इसमें कार्बन कि मात्रा 90% से लेकर 96% तक होती है. इसको जलाने से धुआं नही होता है. और ताप भी अधिक होता है.

बिटूमिनस – इस तरह के कोयले में कार्बन कि मात्रा 80% से लेकर 90% तक होती है. इसमें वाष्पशील द्रव्य अधिक होने के चलते इसको जलाने पर  धुआं देता है. जिसको ताप देकर और पानी से धोकर कोक बनाया जाता है. जो लोहा गलाने के काम आता है. इसके अलावा ताप देकर इससे अलकतरा ही बनाया जाता है.

लिग्नाइट – ये भूरे रंग का होता है. इसमें 40% से लेकर 70% तक कार्बन कि मात्रा एवं 32% पानी की मात्रा होती है. इस तरह की कोयला भाप से बिजली बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

पीट – इस तरह के कोयले में वनस्पति कि मात्रा अधिक होती है. जिसमे कार्बन कि मात्रा 25% होती है. जो लकड़ी कि तरह जलता है. और धुआं भी अधिक देता है.

पेट्रोलियम

कोयले कि अपेक्षा पेट्रोलियम हल्का  पदार्थ है. लेकिन ताप उत्पन्न करने के लिए कोयले से अधिक शक्तिशाली है. जो मुख्यता हवाई जहाज, मोटर गाड़ी, जैसे परिवहन के लिए अधिक महत्त्व है. जितना भी  तेज़ गति से चलने वाली मशीन है. उसमे चिकनाई प्रदान करने वाला लुब्रिकेंट(lubricant) पेट्रोलियम पदार्थ का ही बना होता है.

पेट्रोलियम पदार्थ का निर्माण

पेट्रोलियम पदार्थ कि उत्पति प्राचीन काल के जीव – जंतु के दलदल भूमि में दबने  से, और उनके अपघटित होने बाद रासायनिक परिवर्तन से, होती है. तरल पदार्थ होने तथा अपेक्षित घनत्व कम होने के कारण इसे जिन-जिन परतो में बहने का रास्ता मिलता है. उनमे यह जामा हो जाता है. यह अवसाद शैली में ही पाया जाता है. नए मोड़दर( मुड़ा हुआ) पहाड़, तटीये प्रदेश, या अपतटीये प्रदेश इसके स्थान हुआ करते है. जिसे खुदाई कर के निकला जाता है.

यह चट्टान और रूपांतरित चट्टान में नहीं पाया जाता है. क्योंकि अधिक ताप और भार पड़ने से तेल नष्ट हो जाता है.

पेट्रोलियम पदार्थ का उपयोग

खनिज तेल को उपयोग में लाने से पहले शोधन किया जाता है. जिसमे हल्के तेल, मध्य भार तेल, और भारी तेल अलग – अलग हो जाता है. हल्के तेल जिसे गैसोलीन कहते है. जो हवाई जहाज आदि में प्रयुक्त होता है. इससे भारी केरोसिन तेल होता है. जो घरेलु ईंधन और लालटेन जलने के काम आता है.

मध्यभार वाला तेल डीजल होता है. जो ट्रैकटार, बस, रेलवे इंजन आदि चलाने में काम आता है. और इससे भारी lubricant oil होता है. जिससे मशीनों को घिसने से बचाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है.

ऊर्जा संसाधन प्राकृतिक गैस

यह इथेन और मेथेन हाइड्रोकार्बन गैसीय तत्वों के रूप में पेट्रोलियम के साथ पाई जाती है. इसका उपयोग पिछले कई वर्षो से बढ़ा है. घरेलु ईंधन के रूप में, उधोग के लिए उर्जा के रूप में, और औधोगिक कच्चे माल के रूप में | आज विश्व कि 45% औधोगिक शक्ति प्राकृतिक गैस से ही प्राप्त होता है. इसका उपयोग दुसरे शक्ति – संसाधन से कम खर्च में होता है.

विश्व का सबसे बड़ा गैस भंडार पश्चिम एशिया में है. इसका सबसे बड़ा उत्पादन केंद्र उरेनगोई रूस के उतरी भाग में स्थित है. दूसरा सबसे बड़ा भंडार अमेरिका में है. अमेरिका विश्व का 30% से अधिक गैस उत्पन्न कर रहा है. रूस 26% और कनाडा तीसरा नंबर पर आता है. इसके बाद यूरोपीय देश नीदरलैंड सबसे बड़ा उत्पादक है.

परमाणु खनिज

खानों से ऐसे धातु भी मिलते है. जिनकी नाभि में महान शक्ति छिपी हुई है. जिसको हम परमाणु उर्जा कहते है. जिसका उपयोग विधुत कि तरह ही किया जा सकता है. ऐसे दो धातु है. जिनका नाम यूरेनियम और थोरियम है.
यूरेनियम का अंश लगभग 100 खनिजो में पाया जाता है. इनमे से कुछ देश है. जहाँ इस खनिज को पाया जाता है.

  • ऑस्ट्रेलिया 28%
  • दक्षिण अफ्रीका 15%
  • ब्राजील 10%
  • कनाडा 9%
  • अमेरिका 8%
  • नामीबिया 6%
  • फ्रांस 3%
  • इटली 3%
  • भारत 2%

यूरेनियम ऑक्साइड के चार प्रमुख उत्पादक कनाडा,अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, और ऑस्ट्रेलिया है.  भारत में प्राकृतिक संसाधन थोरियम, का सबसे बड़ा भंडार भारत के केरल में, मलबर तट पर |  विश्व  का 75% थोरियम – उत्पादक भारत ही है.

संसाधनों का संरक्षण

प्राकृतिक संसाधन को सही तरीका से प्रयोग किया जाए ताकि उसका जादा दिनों तक लाभ उठा सके. और भविष्य के लिए भी सुरक्षित रख सके. संसाधन का सही, समुचित, विवेकपूर्ण प्रयोग ही उनका संरक्षण है.

संरक्षण का मतलब ये नही है. कि इसका उपयोग ना कर इसकी रक्षा कि जाए , उपयोग में कंजूसी कि जाए, जरुरत होने के वावजूद उन्हें भविष्य के लिए बचा कर रखा जाए

प्राकृतिक संसाधन संरक्षण के उपाय| प्राकृतिक संसाधन को बचाने के उपाय

मनुष्य प्राकृतिक संसाधन का निर्माण नहीं कर सकता, और न ही उनमे परिवर्तन कर सकता है. हाँ अधिक – से अधिक समाप्त जरुर कर सकता है. जरूरत हमे इस बात कि है. कि उसका उपयोग सही और नियोजित रूप से करे ताकि भविष्य में भी हमे लगातार मिलता रहे. हमारे प्राकृतिक संसाधन एवं उनका संरक्षण जिसमे भूमि, मिटटी, और खनिज विशेष रूप से महत्वपूर्ण है. संसाधनों कि विकास इस ढंग से होना चाहिए ताकि पुरे क्षेत्र का विकास हो सके. प्राकृतिक संसाधन को मनुष्य अपनी पूंजी समझकर उसे उपयोग करना चाहिए.

दुसरे शब्द में, प्राकृतिक संसाधन कम -से – कम दुरुपयोग हो, उनकी कम –से– कम बर्बादी हो, मिटटी जैसे संपदा कि उर्वरकता बनाये रखना, उसे कटाव से बचाना और वन जैसे संपदा के अत्यधिक कटाई हो जाने पर पुनः नया पौधा लगाये जाने कि चेष्टा करना ही उनका संरक्षण कहा जायेगा.

मनुष्य बहुत से प्राकृतिक साधन का उपयोग अपनी जरुरत को पूरा करने के लिए करता आ रहा है. खेती करने के लिए भूमि को जोता, सिंचाई के लिए नदियों का उपयोग किया, औधोगिक विकास के लिए उसने वन्य पदार्थ एवं खनिज का उपयोग किया है.  जनसंख्या और औधोगिक गतिविधि तेजी से बढ़ा है.

यदि प्राकृतिक संसाधन समाप्त हो जाए

विश्व कि जनसँख्या कुछ 100 साल पहले लगभग पौन अरब थी. लेकिन आज के समय में इससे कई गुणा बढ़ोतरी हुई है. हमारी जरुरत कि चीजे जैसे – भोजन, कपडा, आवास, परिवहन साधन और अनेक प्रकार के यंत्र, औधोगिक कच्चे माल आदि, कई गुणा बढ़ गई है. इस करण हम प्राकृतिक संसाधन का तेजी से गलत तरीका और विनाशकारी ढंग से शौषण करते जा रहे है.

उदहारण – हम हवा को और पानी को प्राकृतिक कि मुफ्त देन समझकर सही या गलत तरीका से प्रदूषित करने लगे है. बहुत सारे जीव – जंतु का भी हमने सफाया कर दिया है. इसका मतलब साफ है. कि मनुष्य प्राकृतिक संतुलन को बिगड़ने में लगा है. अगर ये संतुलन नष्ट होता है. तो मनुष्य का अस्तित्व भी खतरे में पड़ सकता है. मनुष्य कि अस्तित्व और प्रगति के लिए प्राकृतिक संसाधन का संरक्षण जरुरी हो चला है.

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