प्राकृतिक वनस्पति किसे कहते हैं

प्राकृतिक वनस्पति वैसे पेड़-पौधे को कहा जाता है, जो मनुष्य के प्रयास के बिना अपने आप उगती और बढती है| हमारे भारत देश के प्रत्येक भाग में किसी न किसी प्रकार की वनस्पति अवश्य पायी जाती है| भारत में 49000 पौधे जो विभिन्न जातियों की सूची एवं उनका वर्णन उपलब्ध है| इनमे से 5000 ऐसे प्रजातियाँ है, जो केवल भारत में ही पायी जाती है|

हमारे देश में फूलो और बिना फूलो वाला पौधा दोनों प्रकार से सम्पन्न है| इसमें फर्न, शैवाल, तथा कवक बिना फूलो वाले पौधे है| पौधो के ऐसे विविधता का रहस्य देश के विभिन्न उच्च स्थान, स्थलकृतियो, मृदा, दैनिक तथा वार्षिक तपन्तारो, वर्षा की मात्रा एवं इसके समय के अन्तर में छिपा है|

वन एवं प्राकृतिक वनस्पति का विस्तार

प्राकृतिक वनस्पति जहाँ पर अधिक घनी हो जाती है, वैसे जगह को वन कहा जाता है| भारत की प्राकृतिक में वनों का महत्वपूर्ण स्थान है| देश में लगभग 6,33,397 हेक्टेयर क्षेत्र में वन का विस्तार है| भारत में वनों का विभाजन एक समान नहीं है| अधिकांश वन हिमालय, असम, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, केरल, अंडमान निकोबार द्वीप समूह तथा पश्चिमी घाट के पर्वत में पाये जाते है|

प्राकृतिक वनस्पति के प्रकार| प्राकृतिक वनस्पति के नाम

हिमालय को छोड़कर देश को चार प्रमुख वनस्पति के क्षेत्र में बांटा जा सकता है|

1 उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन

2 उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन

3 कंटीले वन तथा झाड़ियाँ

4 ज्वारीय वन

 

1 उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन

इस तरह के वन में पेड़-पौधे बहुत तेजी से बढ़ते है, और इनकी ऊँचाई 60 मीटर या इससे भी अधिक हो जाती है| इन वनों की वृक्ष किसी विशेष ऋतू में अपनी पतियाँ नहीं गिराते है, अतः वे सदाहरित है| इन वनों में व्यापारिक महत्त्व के पेड़ आबनूस, महोगनी, तथा रोजवुडपाए जाते है| इसके अलावा रबड़, ताड़और बाँस भी पाये जाते है| ये वन पश्चिम बंगाल के मैदानों, उड़ीसा तथा उतर-पूर्वी भारत में पाये जाते है|

इस तरह के वन 200 से.मी से अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में पाये जाते है|

2 उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन

इस तरह के वन को मानसून वन भी कहा जाता है| क्योंकि ये ज्यादातर मानसूनी प्रदेश में पाया जाता है| यह वन 75 से.मी से लेकर 200 से.मी तक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते है|

इस तरह के वन को पर्णपाती वन इसलिए कहा जाता है. कि ये ग्रीष्म ऋतू में 6 से 8 सप्ताह के लिए अपनी पतियाँ गिरा देता है| ये वन पश्चिमी घाट के पूर्वी ढाल, छोटानागपुर पठार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, केरल, पंजाब, हरियाणा तथा उतर प्रदेश में पाए जाते है| इस तरह के वनों में सागौन और साल के पेड़ अधिक होती है|

3 कंटीले वन तथा झाड़ियाँ

इस तरह के वनों में पेड़-पौधा बिखरे हुए होते है| इनकी जेड लम्बी तथा अरीय आकृति में फैली होती है| ये वन धीरे-धीरे झाड़ियों और कंटीली झाड़ियों में विलीन हो जाती है|

कंटीली झाड़ियाँ मरुस्थलीय वनस्पति है| ये वन देश के उतरी-पश्चिमी भाग में, दक्षिण में सौराष्ट्र से लेकर उतर में पंजाब के मैदान तक फैले है| ऐसे वनों में कीकर, बाबुल, खैर तथा खजूर जैसे पेड़ पाए जाते है|

4 ज्वारीय वन

ये वन खरे पानी तथा ताजे पानी दोनों जगह पनप सकता है| ज्वारीय क्षेत्र में ताजा तथा खरा पानी एक-दुसरे से मिलता रहता है| इस प्रकार के वनों का विस्तार गंगा, महानदी और कृष्णा नदियों के डेल्टाई भागो में है| सुन्दरी इन वनों की प्रसिद्ध वृक्ष है| इसी वृक्ष के नाम पर गंगा ब्रहापुत्र के डेल्टा के वनाछादित भाग का नाम सुन्दर वन है|

ऊंचाई के अनुसार पर्वतीय प्रदेश की वनस्पति

ये वन पहाड़ी भागो में पाए जाने के कारण पर्वतीय वन कहलाते है| हिमालय की पर्वतीय भागो में ऊँचाई, तापमान और वर्षा के आधार पर तीन तरह की वनस्पति पायी जाती है|

उष्ण कटिबंधीय आर्द पर्णपाती वन – ये वन समुद्र तल से 1000 से 2000 मीटर तक की ऊँचाई पर मिलता है| भारत के उतर-पूर्वी भागो में जहाँ भारी वर्षा होती है| उपोष्ण कटिबंधीय चीड के वन में पाया जाता है| इनमे चील या चीड के वृक्ष की संख्या अधिक मात्रा में है| इसमें प्रमुख रूप से बाँस, साल, ओक, चेस्टनट, जैसे वृक्ष पाये जाते है|

शीतोष्ण कटिबंध के शंकुधारी वन – इस प्रकार के वन समुद्र तल से 1600 से 3300 मीटर की ऊँचाई के बीच पाए जाते है| ये शंकुधारी वन है| इस वन के मुख्य वृक्ष सिल्वरफर, चीड, सीडर, स्प्रूस तथा देवदार है|

अल्पाइन वन – इस प्रकार के वन समुद्र तल से 3600 मीटर की ऊँचाई पर पाए जाते है| इन वनों के प्रमुख वृक्ष सिल्वर फर ,चीड, भूर्ज तथा हपुषा है| और अधिक ऊँचाई पर इन वनो का स्थान झाड़ियाँ, गुल्म तथा घास भूमियाँ ले लेती है|

प्राकृतिक वनस्पति के महत्व

वन या वनस्पति मनुष्य के लिए एक महत्वपूर्ण अंग है| पेड़-पौधे मानव जीवन के आधार है| मनुष्य अपने भोज्य पदार्थ के लिए वनों पर निर्भर करता है| वनों से वह फल और जानवरों का मांस प्राप्त करता है| वन्य पशुओ का जीवन भी पेड़-पौधे पर निर्भर है| घर बनाने के लिए या फर्नीचर के लिए भी वनों से लकड़ी प्राप्त होती है| इसके अलावा कागज, गोंद, रबर, दवाएँ, रंग और दूसरी जड़ी-बूटियाँ वन से ही प्राप्त होती है| अतः प्राकृतिक वनस्पति एक महत्वपूर्ण संसाधन है|

प्राकृतिक वनस्पति कृषि व्यवसाय को विशेष रूप से प्रभावित करता है| वनों के कारण वर्षा होती है| और पेड़-पौधे की पतियाँ सड़कर मिटटी में मिलकर उन्हें उपजाऊ बनती है| वन बाढ़ को रोककर मिटटी कटाव को भी नियंत्रित करता है| पेड़ों की छाया के कारण तापमान भी कम होता है| इसीलिए वनों से ढँके क्षेत्रों में गर्मी कम पड़ती है| पेड़-पौधे आँधी तूफान को रोकते है, तथा अपने उपर से जाते बादलों को आकर्षित कर उनसे वर्षा कराते है|

पेड़ पौधे के विनाश के कई दुष्परिणाम सामने आ रहे है| अतः यह कहा जा सकता है कि वनों का विनाश भावी मानव के जन्म पूर्व हत्या के समान है|  वृक्षरोपण से बढ़कर दूसरा कोई मानव-सेवा नहीं हो सकती है| अतः वनों के संरक्षण बहुत महत्वपूर्ण है|

वनों के विनाश का मानव जीवन पर प्रभाव

आज के समय में वनों को तेजी से काटने के कारण जन-जीवन पूरी तरह प्रभावित हुआ है| वन हमारे पर्यावरण को दूषित होने से बचाते है| किन्तु वनों की तेजी से हो रही कटाई के कारण सारा देश प्रदुषण से पीड़ित है| प्रदुषण होने के कारण अनेक प्रकार की बीमारियाँ फैल रही है| प्रदुषण ने हमारा  खान-पान को भी प्रभावित किया है| वनों के काटने से प्रतिवर्ष बाढ़ का प्रकोप बढ़ता जा रहा है| बाढ़ का पानी कृषि भूमि की उपरी परत के उपजाऊ मिटटी को भी बहाकर ले जाता है| इस प्रकार वनों की अंधाधुंध कटाई से जन-जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है| अतः वनों की सुरक्षा बहुत जरुरी है|

वनों की सुरक्षा के उपाय

निम्नलिखित तरीको को अपनाकर वनों की सुरक्षा की जा सकती है|

  • बड़े पैमाने पर पौधा रोपने का कार्यक्रम चलाया जाना चाहिए
  • पेड़ों की कटाई पर रोक लगाना चाहिए
  • विधालय के पाठ्क्रम में वन संरक्षण को प्रमुख स्थान देना चाहिए
  • चिपको आन्दोलन की तरह आन्दोलन चलाकर वन संरक्षण चेतना जन-साधारण में विकसित की जानी चाहिए|
  • वन रक्षण, वृक्षरोपण और वृक्ष काटने के वैज्ञानिक तरीको का उपयोग किया जाना चाहिए|

भारत देश विश्व के उन कुछ देशो में से है जहाँ 1894 ई॰ से ही वन नीति लागु है| वन नीति को 1952 ई॰ और 1988 ई॰ संशोधित किया गया| संशोधित वन नीति 1988 का मुख्य आधार वनों की सुरक्षा, संरक्षण और विकास है| देहरादून में स्थित वन अनुसंधान संस्थान वन संरक्षण का कार्य कर रही है|

निष्कर्ष

हमने इस लेख के माध्यम से प्राकृतिक वनस्पति  के बारे में बताने का प्रयास किया है.मै आशा करता हु कि आपलोग भली – भांति समझ गए होंगे. इस लेख में कहीं भी कोई शब्द छुट गया है. तो हमे कमेंट जरुर करे, अगर ये लेख जारा सा भी अच्छा लगा हो तो अपने दोस्तों एवं सोशल मीडिया में जादा से जादा शेयर करे, धन्यवाद्

 

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