जैन धर्म jainism religion

जैन धर्म की शुरुआत वैदिक काल में हुआ| जो राजस्थान, गुजरात, एवं महाराष्ट्र के लोगो का विश्वास है कि इस धर्म के अंतिम तीर्थकर महावीर थे| जो 24वे तीर्थकर थे|  इससे भी पहले 23 गुरु रह चुके है| इन गुरुओ को ही तीर्थकर कहा जाता था|  जैन धर्म के संस्थापक एवं प्रथम तीर्थकर ॠषभदेव थे, और जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे| जो लगभग 8वी शताब्दी बने थे और इन्होने ने ही जैन धर्म की नींव डाली| जो बनारस के राजा अश्वसेन के पुत्र थे|

महावीर का जन्म

महावीर का जन्म 566 – 567 ई॰पू बिहार के वैशाली कुण्डग्राम नामक स्थल पर हुआ था| इनका बचपन का नाम वर्दमान था तथा इनके पिता का नाम सिद्धार्थ था| महावीर ने 30 साल की उम्र में ही पूर्ण ज्ञान की खोज में अपना गृह त्याग दिया| जो 12 साल ऋजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे कठोर तपस्या के बाद पूर्ण ज्ञान(कैवल्य) प्राप्त हुआ था| इन्होने सुख और दुःख में विजय प्राप्त किये जो आगे चलकर महावीर या जिन के नाम से जाना जाने लगा|

जैन धर्म के सिद्धांत

महावीर के पाँच मूल सिधांत अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रहाचर्य, तथा सम्पति न रखना आदि जैसे जैन धर्म के सिद्धांत थे| महावीर इन पाँचो में से अहिंसा, अपरिग्रह, एवं ब्रहाचर्य में अधिक जोर देते थे| उनका मानना था कि वाही व्यक्ति देवत्व को प्राप्त कर सकता है| जो इन तीन चीजो को सही तरीका से अम्ल करेगा|

जैन धर्म और शिक्षा

इस धर्म के लोगो का विश्वास है कि सभी पदार्थ में आत्मा विधमान है| इसलिए किसी भी जीव-जन्तु को कष्ट नहीं देना चाहिए| महावीर ने सिखाया है कि कर्म ही  पुनर्जन्म का कारण है| जिससे विमुक्ति ही निर्वाण प्राप्ति का साधन है|जैन धर्म के त्रिरत्न सम्यक विश्वास, सम्यक ज्ञान, और सम्यक आचार वे साधन है जिनके द्वारा कोई भी व्यक्ति मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है|

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जैन धर्म के नियम

इस  की महत्वपूर्ण शिक्षा कुछ इस प्रकार है|

  • किसी भी जीव की हिंसा नहीं करना – इसका अर्थ हुआ कि कभी भी हिंसा के बारे में नहीं सोचना चाहिए और न ही इसके कुछ बोलना चाहिए| और न ही किसी व्यक्ति हो हिंसा करने का आदेश देना चाहिए और न इसके लिए किसी को भी उकसाना चाहिए|
  • चोरी नहीं करना चाहिए – इन  धर्म के लोग अस्तेय को अपना महाव्रत मानते है|
  • असत्य (झूठ) नहीं बोलना चाहिए – सत्य जैसे शब्दों के लिए इन  धर्म में बहुत जोर दिया गया है|  सत्य सुन्दर और मधुर हिना चाहिए| इस व्रत को पालन करने के लिए क्रोध, भय तथा लोभ पर विजय प्राप्त करना आवश्यक है|
  • अपवित्रता से बचना चाहिए – इस  धर्म में तपस्या पर भी जोर दिया गया है| इसमें व्रत, उपवास, अनशन, काया को कष्ट देकर और रसों को त्यागकर शरीर को शुद्ध किया जाता है|
  • ब्रहाचर्य व्रत का पालन करना – इसका अर्थ ये होता है कि सभी प्रकार के विषम-वासनाओं को त्याग देना|
  • सम्पति का संचय नहीं करना – इसका अर्थ है किसी वस्तु में अशक्ति न रखना|

जैन धर्म का विस्तार

अपने समय में इस  का खूब प्रचार- प्रसार हुआ जिसमे जैन धर्म को मानने वाले राजा चन्द्रगुप्त मौर्य ने भी इस धर्म को दक्षिण भारत में प्रचार किया| इसके अलावा गुजरात, मालवा, और राजस्थान जैसे जगहों पर भी जैन धर्मो का प्रचार हुआ| इस धर्म में वैदिक कर्मकाण्ड के विरुद्ध एक संगठित आन्दोलन था| यज्ञ-कर्मकाण्ड के लिए इन  धर्मो में कोई जगह नहीं थी| जो आगे चलकर यह दो भागो में विभाजित हुआ|

  • स्वेताम्बर – जो सफेद कपडा पहनते है|
  • दिगम्बर – जो एकदम नंगा रहता है|

जैन धर्म की विशेषता

इस  धर्म की सिधांत और उपदेश जन-साधारण की बोल-चल की भाषा में व्यक्त किए गए थे| इसी कारण से इस धर्म की और लोगो की रूचि बढ़ी| यह धर्म विशेषकर समानता के सिधान्त पर आधारित था| महावीर ने प्रकृति उपदेश जैन धर्म की भाषा अर्धमागधी में दिया| अहिंसा का पालन, सत्य बोलना, चोरी न करना, सबके साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करना आदि कुछ ऐसे नियम थे| जो सभी के लिए प्रिय था| इस नियम को पालन करने में कोई विशेष कठनाई नहीं थी| अतः यह धर्म अपने सरल और व्यवहार में आने योग्य नियमो की विशेषताओ से पूर्ण होने के कारण काफी उन्नति की|

जैन धर्म का महत्व

इस धर्म  का उदय भारत में धर्म-सुधार तथा महान सामाजिक क्रान्ति की लहर के रूप में हुआ था| अतः इसका व्यापक प्रभाव भारत की सभ्यता, संस्कृति और यहाँ की चिन्तनधारा तथा सामाजिक गठन आदि पर पड़ा| इस धर्म  ने सबसे पहले वर्ण-व्यवस्था और वैदिक कर्मकाण्ड की बुराईयों को रोकने का प्रयास किया| जैन धर्मा-वालमिब्यो ने प्रकृति भाषा को अपने धर्मोप्रदेश के लिए अपनाया| इससे प्राकृतिक भाषा और साहित्य का विकास हुआ| इस प्राकृतिक भाषा में कई क्षेत्रीय भाषाएँ विकसित हुई| मध्यकाल की कला और स्थापत्य कला में जैनियों का योगदान है|

प्रमुख त्यौहार

महावीर जयंती

पर्युषण

सोलह्कारण पर्व

पंचमेरू पर्व

ऋषि पंचमी

दीपावली

धर्मग्रंथ

दिगम्बर आचार्य द्वारा जैन ग्रंथो को चार भागो में विभाजित किया गया है|

प्रथमानुयोग

करनानुयोग

चरनानुयोग

द्रव्यानुयोग

महावीर की मृत्यु

72 वर्ष की उम्र में महावीर की मृत्यु बिहार राज्य के पावापुरी राजगीर में हुई है|

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निष्कर्ष 

हमने इस लेख के माध्यम से जैन धर्म के बारे में बताने का प्रयास किया है.मै आशा करता हु कि आपलोग भली – भांति समझ गए होंगे. इस लेख में कहीं भी कोई शब्द छुट गया है. तो हमे कमेंट जरुर करे, अगर ये लेख जारा सा भी अच्छा लगा हो तो अपने दोस्तों एवं सोशल मीडिया में जादा से जादा शेयर करे, धन्यवाद्

 

 

 

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