जन्माष्टमी पर 100 लाइन का निबंध

जन्माष्टमी

जन्माष्टमी पर 100 लाइन का निबंध संसार के सभी सभ्य जातियाँ अपने महान पुरुषो की स्मृतियाँ किसी न किसी रूप में मनाती है| जो जातियाँ वीर पूजा को भूल जाती है. वे नष्ट हो जाती है| हिन्दू जाती विदेशियों और विधर्मियो के दमन चक्र को सहकर आज भी जीवित है| उसका मुख्य कारन यही है. कि वह अपने महान पूर्वजो की स्मृति किसी न किसी तरह मनाती आ रही है| प्रातः स्मरणीय आनन्दकर भगवान कृष्ण जी देश की उन महान विभूतियों में से एक है. जिनके निर्मल यश की चन्द्रिका आज भी सारे संसार में व्याप्त है| और आज भी सारा देश जिनको जन्माष्टमी के पवित्र दिवस पर श्रीदांजलि भेंट करता है|

आज से 5000 हजार वर्ष पहले देश में अन्याय की चरम सीमा हो रही थी| अत्याचारी और अन्यायी कंस का राज्य था| उसने ज्योतिषियों की भविष्यवाणी को सत्य जान अपने बहनोई तथा बहन को ही नहीं अपने माता पिता तक को भी बन्दी बना रखा था| ऐसी परिस्थिति में भाद्र मास की कृष्णाष्टमी के पवन दिवस की अर्धरात्रि को कृष्ण जी का जन्म कंस के कारागृह मथुरा नगरी में हुआ| उनके अवतरित होते ही अँधेरा उजाले में बदल गया| अन्याय की नीव हिल गयी| अत्याचार कांप उठा| सताए तथा पीड़ित प्राण आनन्दित हो उठे और उनमे पुनः नवजीवन का संचार होने लगा, तभी से कृतज्ञ भारतवासी इस अष्टमी महोत्सव को जन्माष्टमी के पवित्र नाम से भारत के प्रत्येक नगर और ग्राम-ग्राम में श्रदा- प्रेम से मानते चले आ रहे है|

कंस ने कृष्ण जी को उसके बचपन में ही मरने के लिए कई उपाय सोचे| परन्तु कृष्ण जी ने बचपन में ही पूतना जैसी राक्षसी, केशी तथा बकासुर जैसे दैत्यों का वध कर दिया था| अंत में कंस के वध से सब अत्याचारी सहम गए| माता पिता कारगर से मुक्त हो गए| जनता को भय से मुक्त किया|

श्री कृष्ण ने पण्डोवो के सहयोग से जरासंध और शिशुपाल जैसे अनेक अन्यायी, अत्याचारी दुष्ट पापियों का वध कर भारत में अखण्ड चक्रवर्ती राज्य स्थापित करने के प्रयत्न किये| महाभारत के महान युद्धक्षेत्र में वीर अर्जुन को गीता का वह पवित्र उपदेश दिया जिसके सम्मुख बड़े-बड़े ज्ञानी आज भी शीश झुकाते है|

जन्माष्टमी प्रति वर्ष भगवान कृष्ण का स्मरण कराती है| झाकियां निकलती है, मन्दिरों को सजाया जाता है| आधी-आधी रात तक हरिकीर्तन होता है, मथुरा वृन्दावन की शोभा ऐसी होती है. मानो सारा वातावरण ही कृष्णमय बन जाता है|

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भगवान कृष्ण की महिमा को केवल देश के ही नहीं विदेश के विद्वान ने भी मुक्त- कंठ से स्वीकार किया है| उनकी दृष्टी में कृष्ण वीर विजेता, योद्धा, महात्मा, नीतिज्ञ तथा महान पुरुष ही नहीं अपितु भगवान पुरुषो में किसी में कोई गुण था, तो किसी में कोई, परन्तु भगवान कृष्ण गुणों के पुंज थे| आज तक इतने गुण संम्पन तेजस्वी, प्रतापी, लोकप्रिय और लोकनायक महापुरुष संसार में और कोई नहीं हुआ| उन्होंने अपनी बांस की नन्ही सी बासुरी में ऐसा मधुर स्वर भर दिया जिस पर बाल, वृद्ध सभी मुग्ध थे|

अतः जनाश्तामी के पवित्र दिवस पर हमे सर्वगुण सम्पन्न श्रीकृष्ण जी के चरित्र से शिक्षा ग्रहण कर अपने जीवन को सफल बना कर सभी प्रकार की कुप्रथाओं और बुराईयों को त्याग देना चाहिए, तभी जन्माष्टमी मानाने का लाभ है|

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